Bharat Gaurav, Ramakrishna Paramahamsa: बंगाल के कामारपुकुर गांव में जन्मे रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन सर्वधर्म एकता पर जोर दिया. इसलिए उन्हें मानवता का पुजारी कहा जाता है. हिंदू ही नहीं बल्कि इस्लाम और ईसाई आदि जैसे अन्य धर्मों के प्रति भी उनकी श्रद्धा थी.


उनकी श्रद्धा में इतनी शक्ति थी कि उन्हें बचपन में ही ऐसा विश्वास हो गया था कि उन्हें ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं. इसके लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति की. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन चितंन में व्यतीत किया. उन्हें सांसारिक सुख, भौतिक सुख और धन-दौलत का कोई लोभ नहीं था. सनातन धर्म परंपरा के ऐसे साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और रोचक बातों को जानते हैं.


 रामकृष्ण परमहंस का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Ramakrishna Paramahamsa Birthday)


रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के हुगली जिले के कामारपुकुर गांव में हुआ था. पंचांग के अनुसार उनकी जन्मतिथि फाल्गुन शुक्ल की तृतीया तिथि मानी जाती है. उनके बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था. उनके पिता नाम का खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता का नाम चंद्रमणि देवी था.


आध्यात्म की ओर उनकी रुचि बचपन से ही थी. उन्हें अंग्रेजी, संस्कृत या अन्य भाषा का ज्ञान नहीं था. लेकिन गुरुओं, ऋषियों और पुजारियों से वे लोक-परलोक, देवी-देवता और पौराणिक कहानियां सुना करते थे.


1843 में गदाधर के पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय की मृत्यु हो गई. परिवार के भरण-पोषण के लिए उनके बड़े भाई रामकुमार ने कलकत्ता की ओर रुख किया. बड़े भाई ने कलकत्ता में ही संस्कृत की शिक्षा के लिए एक स्कूल खोला और इसमें एक पुजारी के रूप में कार्य करने लगे. इधर रामकृष्ण परमहंस का विवाह पड़ोस के गांव की ही पांच वर्षीय कन्या शारदामणि मुखोपाध्याय से कर दिया गया.


उस वक्त रामकृष्ण परमहंस की आयु 23 वर्ष थी. उनका विवाह 1859 में हुआ था. लेकिन जब तक शारदामणि 18 वर्ष की नहीं हुई तब तक दंपति अलग रहे. अठारह वर्ष होने पर शारदामणि दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण परमहंस के साथ जुड़ गईं.




रामकृष्ण परमहंस की धार्मिक यात्रा (Ramakrishna Paramahamsa Biography )


1856 में रामकृष्ण परमहंस दक्षिणेश्वर में काली मंदिर जोकि जेनबाजार कलकत्ता में था, उसके प्रधान पुजारी बन गए. इसके बाद 1861-1863 के दौरान उन्होंने महिला साधु व गुरु भैरवी ब्राह्मणी से तंत्र साधाना की बारीकियां सीखी और तंत्र के सभी 64 साधना को पूरा किया. 1864 में उन्होंने गुरु जटाधारी के संरक्षण में वैष्णव आस्था, 1865 में तोतोपुरी से अद्वैत वेदांत, हिंदू दर्शन की शिक्षा ली.


कैसे और कब हुई रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु (Ramakrishna Paramahamsa Spiritual Journey)


रामकृष्ण परमहंस के गले में कैंसर हो गया था. समय के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और स्थिति बिगड़ती चली गई. 16 अगस्त 1886 को कोसीपोर के बाग घर में उन्होंने अंतिम सांस ली.


रामकृष्ण परमहंस के प्ररेणादायक उपदेश (Ramakrishna Paramahamsa Quotes)



  • जिस तरह किसी मिट्टी के खिलौने का हाथी या फल देखने से असली हाथी या फल की याद आती है. ठीक उसी तरह ईश्वर के चित्र या मूर्तियों को देखने से भी उस परमात्मा की याद आती है जोकि सनातन और सर्वव्यापी है.

  • जरूरी चीज है छत तक पहुंचना. तुम पत्थर की सीढ़ी से चढ़कर जा सकते हो, बांस की सीढ़ी से चढ़कर जा सकते हो या फिर रस्सी से भी चढ़कर जा सकते हो. इसी तरह परमात्मा को किसी भी मार्ग से प्राप्त किया जा सकता है. सभी धर्म के मार्ग सत्य है.

  • हम कष्ट और दुर्गति भोगते हैं क्योंकि भगवान तो सबके मन में हैं लेकिन सबका मन भगवान में नहीं लगा है.

  • यदि एक बार गोता लगाने से तुम्हें मोती न मिले, तो तुम्हें यह निष्कर्ष बिल्कुल नहीं निकालना चाहिए कि समुद्र में रत्न ही नहीं होते है.

  • कौन किसका गुरु है? एकमात्र ईश्वर ही सबके और ब्रह्मांड के गुरु हैं.


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