Maharshi Panini Father of Sanskrit: संस्कृत को देववाणी और आदिभाषा कहा जाता है. इसे न केवल भारत बल्कि प्राचीनतम और श्रेष्ठतम भाषा माना गया है. हिंदू धर्म के लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों को संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है. आज के समय में भी पूजा-पाठ और यज्ञ आदि में संस्कृत मंत्रों का ही उच्चारण किया जाता है.


लेकिन क्या आप जानते हैं कि संस्कृत भाषा के जनक कौन है. संस्कृत भाषा का जनक महर्षि पाणिनि (Maharshi Panini) को कहा जाता है. संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में इनका अहम और अतुलनीय योगदान रहा है.


महर्षि पाणिनी के संस्कृत में अतुलनीय योगदान के कारण ही उन्हें संस्कृत के जनक के रूप में भी जाना जाता है. पाणिनि द्वारा लिखे गए व्याकरण ग्रंथ का नाम ‘अष्टाध्यायी’ है. इसमें कुल आठ अध्याय और लगभग चार सहस्त्र सूत्र हैं.


महर्षि पाणिनि का समयकाल (maharshi panini ka jivan parichay)


पाणिनि का समयकाल अनिश्चित और विवादित है. लेकिन माना जाता है कि इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व रहा होगा. इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था, जोकि अब पेशावर (पाकिस्तान) के पास है. उस समय यह भारत के उत्तर पश्चिम गांधार जनपद का हिस्सा हुआ करता था. पाणिनी के ही समकालीन पतंजलि थे.पाणिनि के द्वारा लिखे गए व्याकरण का नाम ‘अष्टाध्यायी’ है. पाणिनि का संस्कृत व्याकरण चार भागों में है – माहेश्वर सूत्र, स्वर शास्त्रअष्टाध्यायी,शब्द विश्लेषणधातुपाठ, धातुमूल (क्रिया के मूल रूप) गणपाठ.


महर्षि पाणिनि के महत्वपूर्ण कार्य (maharshi panini biography in hindi)



  • महर्षि पाणिनि को उनके भाषा-व्याकरण के लिए जाना जाता है. इनके द्वारा लिखे संस्कृत के व्याकरण का अनुसरण कर ही दुनियाभर के अन्य भाषाओं का व्याकरण निर्मित हुआ. हालांकि इनके पूर्व भी कई विद्वानों ने संस्कृत भाषा को नियमों में बांधने की कोशिश की, लेकिन पाणिनि का शास्त्र सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ.

  • पाणिनि द्वारा लिखा व्याकरण ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ में 550 ईपू रचित 8 अध्यायों में फैले 32 पदों के तहत 3,996 में पिरोए गए सूत्रों ने दुनिया की अन्य भाषाओं को भी समृद्ध किया. साथ ही ज्ञान से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों का खुलासा भी किया है.

  • अष्टाध्यायी ग्रंथ में 8 अध्याय और लगभग 4 सहस्र सूत्र हैं. व्याकरण के इस ग्रंथ में पाणिनी ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र को वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संग्रहीत किए हैं.

  • पाणिनि द्वारा लिखा गया व्याकरण ‘अष्टाध्यायी’ केवल व्याकरण ग्रंथ ही नहीं है. बल्कि इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का संपूर्ण चित्रण भी मिलता है. उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन और खान-पान से लेकर रहन-सहन आदि का प्रसंग कई जगहों पर अंकित है.

  • पाणिनी के 'अष्‍टाध्‍यायी' ग्रंथ में भाषा और व्‍याकरण के साथ ही तत्‍कालीन सामाजिक शिष्टाचार व लोकाव्यवहार का भी संक्षिप्त वर्णन मिलता है. साथ ही इसमें विभिन्‍न पकवानों का भी वर्णन मिलता है.

  • पाणिनी ने 'अष्टाध्यायी ' में 6 प्रकार के धान का भी उल्‍लेख मिलता है. जो क्रमश: ब्रीहि, शालि, महाब्रीहि, हायन, षष्टिका और नीवार है. पाणिनी के काल में मैरेय, कापिशायन, अवदातिका कषाय, कालिका नामक मादक पदार्थों का प्रचलन हुआ करता था.

  • शिव जी के माहेश्वर सूत्र भी अष्टाध्यायी और संस्कृत व्याकरण के 14 सूत्र हैं. माना जाता है कि पाणिनि शिवजी के भक्त थे. मान्यता है कि पाणिनि के अराधना से प्रसन्न होकर शिवजी ने डमरू बजाकर तांडव नृत्य किया और इसकी आवाज सुनकर पाणिनि ने माहेश्वर सूत्र की रचान की.

  • पाणिनि द्वारा शिव के माहेश्वर सूत्रों  के 14 सूत्रों में-


अइउण्।,ऌक्।, एओङ्।,ऐऔच्।, हयवरट्।,लण्।,ञमङणनम्।, झभञ्।, घढधष्।, जबगडदश्।, खफछठथचटतव्।, कपय्।, शषसर्।, हल्। है.


महर्षि पाणिनि के व्याकरण के महत्व पर विद्वानों का मत और विचार



  • पाणिनि व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है- लेनिनग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी (Leningrad Professor T. Scherbatsky).

  • पाणिनि व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं- कोल ब्रुक (colebrook)

  • संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है- सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर (Sir W. W. hunter).

  • पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा- प्रो. मोनियर विलियम्स ( Monier Williams)


ये भी पढ़ें: Meera: कृष्ण की दीवानी मीरा कौन थी, जो पी गई विष का प्याला







Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.