विश्व में हर महान व्यक्ति के पीछे निश्चित ही लोगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है. प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष, लोग ही वे मौके बनाने के औजार बनते हैं जिससे एक व्यक्ति सफलता पाता है. शिक्षा में प्रथम गुरु मां से लेकर पिता, भाई, बहन, मित्र, सहचर सभी की भूमिका होती है. भारतीय परंपरा में इसी कारण सभी के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया है.


भगवान दत्तात्रेय ने सामान्य नियमों के अनुसार किसी को गुरु नहीं बनाया. लेकिन उन्होंने 24 गुरुओं से सीख ली. इसमें पशु-पक्षी आदि सभी शामिल हैं. यहां उन्होंने इनसे शिक्षा ली उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात है कि उन्होंने उन्हें गुरु माना और सीख को स्वीकार किया. आज जब भी भगवान दत्तात्रेय का जिक्र आता है, तो 24 गुरुओं की चर्चा होने लगती है.


वर्तमान दौर एकांकी परिवार और व्यक्ति का होता है. आज के समय में अकेले आगे बढ़ने की आदत बढ़ रही है. ऐसे में लोगों को लगने लगा है कि वे स्वयं सफलता के सौपान चढ़ने के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि, सच्चाई इससे इतर है. हर कदम पर कोई होता है जो सहयोग सहकारिता और समर्थन की भूमिका अदा करता है. इनके प्रति कृतज्ञ होकर ही सच्ची सफलता का स्वाद चखा जा सकता है.


जो लोग अन्य के सहयोग को स्वीकार नहीं करते हैं उन्हें क्षणिक सफलता से संतुष्ट हो जाना पड़ता है. बड़ी सफलता सामूहिक संचार का परिणाम होती है. सहयोग से उपलब्ध होती है. सत्ता शीर्ष से लेकर आम व्यक्ति तक तमाम सूत्र एक दूसरे से जुड़े होते हैं. शिखर का आधार नींव का पत्थर है. वहीं नींव के पत्थर की दृढ़ता में शिक्षर का प्रभाव निहित है.