Buddha Amritwani, Gautam Buddha Story: मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है और इसलिए मन में कई तरह के विचार उत्पन्न होते हैं. क्षण भर में ही व्यक्ति का मन कई चीजों को सोचने लगता है. इसलिए तो कहा जाता है कि मन को काबू करना आसान नहीं. लेकिन गौतम बुद्ध मन को नियंत्रित करने के आयामों के बारे में भी बता चुके हैं.
मन में विचारों का आना गलत नहीं है कि लेकिन मुश्किल तब हो जाती है या विचार ऐसी परिस्थिति में गलत होते हैं जब मन में अश्लील विचार आते हैं. कभी-कभी तो ना चाहने के बावजूद भी मन में अश्लील विचार आते हैं. अगर आपके मन में भी ऐसे विचार आते हैं तो गौतम बुद्ध की इस कहानी से आपके विचारों में जरूर बदलाव आएगा.
बुद की कहानी: अश्लील विचारों को कैसे रोकें
बुद्ध अपने भिक्षुओं को उपदेश देने के साथ ही उन्हें भिक्षाटन के लिए भेजते थे. एक बार उन्होंने अपने भिक्षु भरत को भिक्षा लेने के लिए एक श्राविका के घर भेजा. भरत पूरे रास्ते मन में यह सोचते हुए श्राविका के पास गया कि आखिर आज भिक्षा में क्या भोजन खाने को मिलेगा. क्योंकि भरत चंद्रूवंश के राजकुमार थे और बुद्ध के सानिध्य भिक्षु के रूप में दीक्षित हुए थे.
हमेशा भरत को महल में खाने के लिए स्वादिष्ट पकवान मिलते थे. लेकिन आज भिक्षा के रूप में उसे जो भी मिलेगा संतुष्ट होना पड़ेगा. श्राविका के घर पहुंचकर भरत ने भिक्षा मांगी. श्राविका ने भरत को बैठने के लिए कहा और भोजन लाने के लिए घर के भीतर चली गई. इधर भरत फिर से अपने प्रिय भोजन के बारे में सोचने लगे और जैसे ही श्राविका भोजन लेकर आई तो भरत अचंभित रह गए. भरत ने देखा कि श्राविका ने उनके लिए उनके पंसदीदा पकवान परोसे हैं और अपने प्रिय भोजन को देखकर वह खुश हो गए.
भोजन ग्रहण करते हुए भी भरत सोच रहे थे कि, महल में तो उन्हें भोजन के बाद विश्राम करने की आदत है. लेकिन आज उन्हें भोजन के बाद वापस तेज धूप में चलकर आश्रम जाना होगा. लेकिन भोजन के बाद श्राविका ने भरत को कुछ समय के लिए विश्राम करने का आग्रह किया. भरत फिर से खुश हुए कि आखिर आज उनके मन की सारी इच्छाएं कैसी पूरी हो रही है. इसके बाद भरत कुछ देर विश्राम करने लगे.
लेकिन विश्राम करते हुए भी लेटे-लेटे वह सोचने लगे कि, आज तो मुझे भोजन के बाद विश्राम करने को मिल गया लेकिन ऐसा रोज-रोज नहीं होगा. जब भरत विश्राम के बाद उठे तो श्राविका ने कहा कि, आप जब तक चाहे यहां ठहर सकते हैं.
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भरत अब समझ गए की ये कोई संयोग नहीं हो सकता. उन्होंने श्राविका से कहा कि, मुझे क्षमा कीजिये, क्या आप मेरा मन पढ़ सकती हैं? श्राविका ने हां में उत्तर दिया और कहा कि हां मैं मन पढ़ सकती हूं. शुरू में यह कठिन था. लेकिन फिर मैंने स्वयं के मन विचारों को देखना शुरू किया. पहले मेरे विचारों की संख्या अनगिनत हुआ करती थी. इसके बाद मैंने विचारों पर ध्यान केन्द्रित किया बिना पक्ष-विपक्ष के अपने विचारों को देखने लगी.
इस तरह से धीरे-धीरे मेरे मन में विचारों की संख्या कम होती गयी और सारे व्यर्थ विचार दूर हो गए. इसके बाद से ही मैं दूसरों के मन में चल रहे विचार को पढ़ लेती हूं. हालांकि श्राविका की बात सुनकर भरत घबरा गए. इसके बाद भरत ने श्राविका से आज्ञा ली और आश्रम के लिए निकल पड़े. रास्ते में भी भरत फिर से मन में आए विचारों का स्मरण करने लगे कि श्राविका के बारे में उसके मन में अश्लील विचार भी आये थे. श्राविका ने उसे भी जान लिया होगा, वह मेरे बारे में क्या सोचती होगी. भरत खुद को लज्जित महसूस कर रहे थे.
भरत ने आश्रम पहुंचकर गौतम बुद्ध से कहा कि, अब मैं कभी भिक्षाटन के लिए नहीं जाऊंगा. बुद्ध ने भरत को पास बुलाया और कहा कि, क्या हुआ है, तुम मुझे सारी व्यथा बताओ. भरत ने सारी बातें बुद्ध को बताई. इसके बाद बुद्ध ने कहा कि, अगले एक हफ्ते तक तुम भिक्षाटन के लिए उसी श्राविका के घर पर जाओगे. लेकिन तुम्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि, कल भिक्षाटन के लिए जाते हुए तुम अपने चित को पूरे होश में रखना, तुम्हारे भीतर क्या विचार उठे उनपर ध्यान केंद्रित करना और यह भी ध्यान रखना कि तुम्हारे मन में कौन सी वासना उठ रही है. तुम कल इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर जाना और इसके बाद मुझे वापस आकर बताना.
अगले दिन भरत भिक्षाटन के लिए गए. बुद्ध के बताए अनुसार वह पूरे रास्ते अपने होश को जाग्रत रखते हुए चल रहे थे. जब श्राविका का घर आया तो भरत ने भिक्षा मांगी. उसके भीतर कोई वासना नहीं थी और ना ही कोई विचार उत्पन्न हो रहे थे. क्योंकि उसने अपने मन को पूरी तरह जागृत रखा था. भरत ने भिक्षा ली और आश्रम चला गया. भरत ने बुद्ध को प्रणाम किया और कहा कि, आज उसे जिस आनंद की अनुभूति हुई वह पहले कभी नहीं हुई.
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