कौटिल्य अर्थात् आचार्य चाणक्य का संपूर्ण जीवन सरलता का सर्वाेत्तम उदाहरण है. आचार्य चाणक्य ने तक्षशिला में प्राप्त शिक्षा का वहीं पुनरुत्थान किया. ग्रंथ लिखे. चाणक्य की अर्थनीति और कूटनीति वैश्विक स्तर पर जानी पढ़ी और अपनाई जाती है.
उनके विचारों की श्रेष्ठता का स्तर इतना महान रहा कि उन्होंने अपने जीवन काल में दो महान क्रांतियों का नेतृत्व किया. पहली थी, भारत के सीमांत राज्यों को बाहरी हमलावरों से मुक्त कराना. दूसरी रही, विलासिता और भ्रष्टाचार में लिप्त धननंद के शासन से मगध को मुक्ति दिलाना.
इन दो सफल प्रयासों के बावजूद आचार्य चाणक्य आजीवन अत्यंत साधारण रहे. सम्राट चंद्रगुप्त का आचार्य, मुख्य सलाहकार और महामात्य होकर भी वे राजकाज में खर्च होने वाली तेल की प्रत्येक बूंद का हिसाब रखते थे. राजकाज के बाद दीपक को तुरंत बुझा दिया करते थे ताकि तेल व्यर्थ न जले.
घर के द्वार हमेशा खुले रखते थे. इससे उन्हें मिलने में लोगों को आसानी होती थी. उनकी सदाशयता इतनी थी कि सभी शिष्य, नागरिक, राज्यकर्मचारी उन्हें सहज ही अपना मानते थे. आचार्य का पहनावा, खानपान और रहन-सहन सदैव आदर्श रहा. इसी से वे उूर्जा पाते थे. रास्ते कंटकों को वे खुद ही उखाड़कर आगे बढ़ते थे.
उनकी ही वैचारिक श्रेष्ठता का परिणाम था कि चंद्रगुप्त केे राज्य में जब अकाल पड़ा तो उसने पूरा खजाना आम नागरिकों पर खर्च कर दिया. कहा जाता है कि लोगों के समान ही चंद्रगुप्त स्वयं भूखा रहा.