दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ।।


अर्थ- दुष्ट पत्नी, धूर्त मित्र, मुहफट नौकरों और घर में सर्प का वास हो तो ऐसी स्थिति में मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता (अर्थात् ये साक्षात् मृत्यु के समान ही है)


चाणक्य के अनुसार कठोर वचन बोलने वाली और दुराचारिणी स्त्री से घर नरक बन जाता है. मित्र के धूर्तता पूर्ण आचरण से व्यक्ति हमेशा संदेह में रहता है और अपने दिल की बात किसी से नहीं कह सकता है. वैसे ही मुहफट नौकर मालिक का आत्मविश्वास डगमगा देता है और मालिक के निर्णय को प्रभावित करता है. ये तीन ऐसे कारक हैं जिनके रहने से व्यक्ति का अहित अवश्य होता है.


ऐसे व्यक्तियों की निकटता सांप के साथ घर में रहने के समान है. इससे मुत्यु तुल्य कष्ट होगा इसलिए ऐसे लोगों से संतुलित व्यवहार रखें. यदि इनके बीच संतुलन बिगड़ जाए तो उन्हें दूूर कर देने में ही भलाई समझना चाहिए. इनकी उपस्थिति घर में रह रहे सर्प के समान है जो एकदिन डसेगा ही.


वास्तव में आचार्य का कहना है कि सुखी गृहस्थी चलाने के लिेए मृदुभाषी पत्नी चाहिए. और व्यक्ति को अपनी आपसी सलाह के लिए विश्वसनीय मित्र चाहिए जिनके बीच वो बिना झिझक अपनी बात साझा कर सके. इसमें उसे विश्वास होता है कि उसका मित्र उसकी स्थिति का कोई गलत फायदा नहीं उठाएगा. वैसे ही उसे नौकर भी आज्ञाकारी और मालिक को समझने वाला नौकर चाहिए ताकि वह सुख पूर्वक रह सके. उनका कहना है कि व्यक्ति को अगर ऐसा वातावरण न मिले तो उसका जीवन सर्प के साथ रहने समान है. उस बुद्धिमान व्यक्ति को धूर्त मनुष्यों से सदा सतर्क रहना चाहिए.