धननंद के अत्याचार से किशोरवस्था में ही मां-पिता को गंवा चुके आचार्य चाणक्य तक्षशिला से जब अर्थशास्त्र और कूटनीति के प्रकांड पंडित होकर पाटलिपुत्र लौटे तो उन्होंने भोजन व्यवस्था के लिए मित्र के घर को चुना. रात्रि में अपने पुराने हो चुके घर में विश्राम करने के बाद दिनभर राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुडे़ रहते थे. इस बीच दिन में वे मित्रों से मिलते थे. उनके घर भोजन और दोपहर का विश्राम करते थे.
चाणक्य के पिता को राजदंड मिला था. इस बात को सभी संबंधित महत्वपूर्ण व्यक्ति जानते थे. स्वयं धननंद इस तथ्य को जान गए थे कि आचार्य चाणक्य उनके राज्य में पुनः पधार चुके हैं. राजा के षड्यंत्रों और स्वयं की कूटनीतिक चालों के मध्य उन्होंने कभी अपने मित्रों को अपनी गतिविधियों से अवगत नहीं होने दिया. मन वचन और कर्म से चाणक्य अपनों के समक्ष सरल बने रहे. उन्हें अपने प्रयासों और सत्ता से संघर्ष की भनक तक नहीं लगने दी। करीबियों के उकसाने पर भी वे सदा शांत रहे.
अति उत्साह, भावनात्मकता और प्रेम पर उनका आत्म नियंत्रण हावी रहा. इसी कारण वे नजदीकियों को सत्ता के प्रकोप से बचाने में सफल रहे. बिना दिखावे के अत्यंत सरल रहकर उन्होंने लक्ष्यों को प्राप्त किया और इन लक्ष्यों की नकारात्मकता से किसी अपने को प्रभावित नहीं होने दिया.