Chhath Puja 2024: छठ पूजा का व्रत पुरुष कर सकते हैं या नहीं, क्या कहता है धर्म शास्त्र
Chhath Puja 2024: छठ पूजा सूर्य देव (Surya Dev) और छठी मैया को समर्पित पर्व है. शास्त्र के मुताबिक महिला या पुरुष जिसमें भी चार दिनों तक सात्विक, समर्पित और संयम रहने का भाव हो, वह छठ व्रत कर सकता है.
Chhath Puja 2024: लोक परंपरा से जुड़े छठ पर्व की महिमा अपार है. यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है, जिसमें चार दिनों तक नियम, संयम, सात्विकता का पालन करना पड़ता है और डेढ़ दिनों (36 घंटे) का निर्जला व्रत रखने का विधान है.
महिलाएं छठ का व्रत रखकर छठी मैया से संतान की रक्षा और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि, क्या छठ पूजा केवल महिलाएं कर सकती हैं या पुरुष भी इस व्रत को कर सकते हैं. आइये जानते हैं धर्म शास्त्रों में इसके बारे में क्या कहा गया है.
क्या पुरुष छठ व्रत रख सकते हैं (men perform chhath vrat)
एस्ट्रॉलोजर अनीष व्यास के अनुसार, छठ पूजा पुरुष भी कर सकते हैं. छठ पूजा को लेकर ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसमें यह कहा गया हो कि यह व्रत केवल महिलाएं ही कर सकती हैं. इसलिए सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी इसे कर सकते हैं. इसमें कोई रोक नहीं है. विधि-विधान से छठ व्रत रखने का जितना फल महिलाओं को मिलता है, उतना ही फल पुरुषों को भी मिलता है.
कर्ण ने की थी सूर्य उपासना की शुरुआत: छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा और महाभारत काल में पुरुषों द्वारा ही छठ पूजा किए जाने का प्रमाण मिलता है. छठ पूजा में महिलाएं कमर तक पानी में रहकर सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं. लेकिन सूर्य उपासना की शुरुआत कर्ण से मानी जाती है. महाभारत (Mahabharat) के योद्धा कर्ण ने सूर्य देवता का व्रत किया. कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य उपासना करते थे और अर्घ्य देते थे. इसके फल से कर्ण को राज्य और वैभन सुख की प्राप्ति हई. इसलिए ऐसी मान्यता है कि छठ व्रत रखने और सूर्य उपासना करने से पुरुषों को बल और वैभव प्राप्त होता है.
राजा प्रियंवद ने भी की थी छठ पूजा: छठ पूजा की कथा राजा प्रियंवद से जुड़ी है. कथा के अनुसार राजा को संतान सुख न मिलने से वह बहुत दुखी रहता था. इसके लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया. उन्होंने राजा और उसकी पत्नी को यज्ञ की आहूति के लिए बनाई खीर खाने को दी, जिसके बाद रानी गर्भवती हुई. और उसे एक पुत्र को जन्म दिया.
लेकिन पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ, जिसके बाद राजा और अधिक निराश हो गए और अपने प्राण त्यागने लगे. तभी वहां देवी षष्ठी प्रकट हुईं. इन्हें लोकभाषा में छठी मैया कहा जाता है. देवी षष्ठी ने राजा से अपनी पूजा करने को कहा. राजा प्रियंवद ने व्रत रखकर देवी षष्ठी की पूजा की. जिसके प्रभाव से रानी ने एक स्वस्थ और सुंदर पुत्र को जन्म दिया.
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