छोटी दिवाली को रूप चतुर्दशी क्यों कहते हैं, नहीं जानते हैं यहां पढ़ें इससे जुड़ी रोचक कथा
Roop Chaudas 2024: छोटी दिवाली को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है, इस दिन स्नान और उबटन लगाने का विशेष महत्व है. रूप चतुर्दशी की पौराणिक कथा और महत्व आइए जानते हैं.
Roop Chaudas 2024: नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था. इस दिन भक्त दुख और भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा-अर्चनाा करते हैं. इस दिन हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए.
नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं रूप चतुर्दशी? (Narak Chaturdashi 2024)
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता के अनुसार हिरण्यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया. कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए. इस बात से दुखी हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही. नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें. ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी. राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था. राजा फिर से रूपवान हो गए. तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं.
पौराणिक कथा (Katha)
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं. यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए. तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें.
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी. भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है.
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