सफलता की कुंजी: विचारों में रखें स्पष्टता, द्वंद्व से रहेंगे दूर
सहज सरल ढंग से लक्ष्य की प्राप्ति सफलता है. इसमें सर्वाधिक सहायक वैचारिक दृढ़ता होती है.
दुनिया में जितने भी महान लोग हुए हैं स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस एवं भगत सिंह इत्यादि इन सबकी सफलता का मूल कारण वैचारिक दृढ़ता रही. इसमें महत्वपूर्ण बात यह भी है कि उम्र से विचारों की मजबूती का संबंध न के बराबर होता है. गौर से अनुभव करें जो बच्चे बड़ों की तुलना में अधिक वैचारिक दृढ़ होते हैं. वे समझौतावादी नहीं होते. उनकी मनोस्थिति पर बुद्धि हावी नहीं हो पाती है. इसी कारण वे अपने कर्त्तव्यों और लक्ष्यों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. उम्र बढ़ने के साथ वे समाज के प्रति संवेदनशील होते जाते हैं. इससे उनमें वैचारिक द्वंद्व बढ़ता है वैचारिक स्थिरता में कमी आती है.
स्वामी विवेकानंद अल्पायु में ही अध्यात्म की शरण आ गए थे. यहां उनके विचारों को उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने और मजबूती दी. उनका द्वंद्व खत्म हुआ और वे महान दार्शनिक के रूप में विश्व में विख्यात हुए. भगतसिंह अत्याल्पायु में ही अंग्रेजों से लोहा लेने दृढ़ प्रतिज्ञ हो गए थे. सुभाषचंद्र बोस अपने वैचारिक बल पर सैन्य शक्ति संगठित करने में सफल हुए. महात्मा गांधीजी आजीवन अपने कठोर संकल्पों और व्रतों के लिए विख्यात रहे और हमेशा रहेंगे. वे अपनी बात इतनी स्पष्टता से रखते थे कि विरोधी उनसे सहमति जताने को बाध्य नजर आते थे.
स्पष्टता बढ़ाने के लिए ईमानदार प्रयास की जरूरत है. छोटे-मोटे अवरोधों से अपने लक्ष्य से पीछे हटने वाले लोग निर्द्वंद्व नहीं कहे जा सकते हैं. पक्का मन साहसी का ही हो सकता है. साहस सामर्थ्य से आता है. सामर्थ्य का संरक्षण दृढ़ता से होता है.