Coronavirus: उच्च के सूर्य ही कसेंगे कोरोना पर लगाम.....
कोरोनावायरस पर पं. शशिशेखर त्रिपाठी बता रहे हैं कि ग्रहों के राजा सूर्य के उच्च स्थान के होने पर ही कोरोना कंट्रोल होने की प्रबल संभावना बन रही है. चलिए समझते हैं क्या हैं और ज्योतिषीय कारण....
आज पूरा विश्व कोरोनावायरस रूपी दानव से हाहाकार कर रहा है. क्या विकसित देश और क्या विकासशील देश इस कोरोनावायरस ने सभी को आतंकित कर दिया है. आइए जानते हैं पं. शशिशेखर त्रिपाठी की इसे लेकर क्या राय है.
कोरोना के पीछे है राहु
सभी प्रकार के वायरस या बैक्टीरिया का प्रतिनिधित्व राहु करता है और राहु का संबंध विष से होता है. राहु सर्प का फन है. जिस फन से वह डसता है. संक्रमण का संबंध राहु से है. राहु अचानक किसी चीज का धमाका या ब्लास्ट कराने की दम रखता है. राहु विशालता का भी प्रतिनिधित्व करता है. नाकारात्मकता को ग्लोबलाइज कर सकता है. वर्तमान समय अंतरिक्ष में राहु मिथुन राशि से गुजर रहा है, और इस राशि के जिस नक्षत्र से राहु गुजर रहा है वह नक्षत्र आर्द्रा. आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी स्वयं राहु है. आर्द्रा का अर्थ नमी. विष से भरा हुआ राहु नमी के नक्षत्र में है. इसको गहराई से यदि समझें तो जिस ड्रॉपलेट्स में कोरोना वायरस यात्रा कर रहा है वही ड्रॉपलेट्स को राहु और आर्द्रा नक्षत्र इंगित कर रहा है. राहु आर्द्रा नक्षत्र में 20 मई 2020 तक रहेगा.इसके बाद से वायरस का प्रसार कम होगा.
मिथुन राशि में राहु हो गया पॉवर फुल
मिथुन राशि वायु तत्व की राशि है. मिथुन राशि का यदि सिंबल देखें तो स्पष्ट रूप से समझ में आता है की इसमें कम्युनिकेशन है. दो लोग बात कर रहें हैं. वह राशि कम्युनिकेशन और समाजिकता का भी कारक है. यानी जो सामाजिक चेन है उसके माध्यम से राहु ने जहर घोलने का प्रयास किया है. राहु मिथुन राशि में उच्च का होता है उच्च यानी फुल पावर में आना. कालपुरुष पुरुष की कुंडली के तृतीय भाव में मिथुन राशि होती है और इसी में राहु का संचरण करना वैश्विक घटना को भी दर्शाता है. राहु मिथुन राशि में 23 सितंबर 2020 तक रहेगा. राहु के मिथुन राशि छोड़ने के बाद इस वायरस का आतंक समाप्त होने की प्रबल संभावनाएं दिखाई दे रही है.
बचाने वाले ग्रह स्वयं हैं कमजोर
ग्रहों का क्रम अनोखा है, यानी इस आपदा में मुख्य भूमिका निभाने वाले ग्रह शनि, सूर्य, मंगल केतु राहु गुरु हैं. अब इसको समझते हैं- जैसे शनि जनमानास ,आम जनता और मजदूर है. सूर्य आरोग्य और सरकार है. मंगल रक्त, पुलिस, डॉक्टर और पैनिक स्थितियां भी यही है. केतु भय है, शंका है, केतु दवा की शोध है और केतु मृत्य भी है. राहु के विष और संक्रमण है. गुरु जीव है. औषधि अच्छे से काम करे यह भी गुरु पर निर्भर है. विड़म्बना यह हुई कि सकारात्मक ग्रह नकारात्मक ग्रहों से पीड़ित हैं. यानी मारने वाला ज्यादा बलशाली है, और संक्रमण करते हुए अपनी टीम को बढ़ा रहा है वहीं दूसरी ओर बचाने वालों की टीम कम हो रही है.
सूर्य की निर्बलता से नहीं रुक रहा है प्रकोप
आरोग्य के देवता ने जैसे ही धनु में प्रवेश किया तो वह कमजोर हो गए उसका पूरा फायदा उच्च के राहु ने उठाते हुए विषाणु संक्रमण को तेजी से फैलाना शुरू कर दिया, चूकि सूर्य कमजोर थे इसलिए सरकारें भी इसे गंभीरता से नहीं ले पायी या समझ नहीं पायी. मकर संक्राति में आते ही राहु विस्फोट हो गया और सूर्य के बलवान न होने के कारण कई देशों की सरकारें उसे ठीक से काबू न कर पाईं. सूर्य अब मीन राशि में संचरण कर रहे हैं. जनवरी से मार्च तक सूर्य कमजोर रहते हैं और उसी समय अक्सर देखा गया है की रोग भी बढ़ता हैं दुर्भाग्य की बात यह हुई कि इस बदलते मौसम का भी फायदा राहु रूपी असुर ने उठाया. सूर्य जब मीन से निकल कर अपनी उच्च राशि मेष में जाएंगे तब वह मजबूत होंगे तभी सरकारें भी मजबूत होंगी. चीजें नियंत्रित होंगी. राहु की विषाक्तता पर सूर्य का आरोग्य प्राप्त होगा. 13 अप्रैल को सूर्य मेष राशि में आ जाएंगे उसके बाद सरकारें मजबूत होगी. कुछ भय कम होगा. लेकिन शत्रु का पूरा शमन करने में सरकार को सितंबर तक सफलता मिलेगी, क्योंकि 23 सिंतबर को राहु और केतु अपनी राशि बदलेंगे.
सूर्य ग्रहण का भी है असर26 दिसबंर को कंकणाक्रती सूर्य ग्रहण पड़ा था सूर्य ग्रहण जब भी पड़ता है तो धरती पर कुछ न कुछ विपदा आती है. ग्रहण काल में या उससे कुछ दिन आगे पीछे गुरुत्वीय ऊर्जा में कुछ परिवर्तन होता है जिसका असर आत्मा से लेकर पृथ्वी तक पर पड़ता है. सूर्य ग्रहण भी कारण है इस महामारीका . सूर्य ग्रहण का असर छह महीने रहता है और यह जून में समाप्त होंगे. लेकिन यदि बीच में संवत्सर बदल जाए तो उसका प्रभाव में न्यूनता आ जाती है. 25 मार्च नव संवत्सर प्रारम्भ हो गया है. इसलिए ग्रहण का प्रभाव में भी कमी आने लगेगी.
गुरु चले नीच के घर .. बिना सूर्य की मदद के असहाय
कल से यानि 30 मार्च से जो स्थिति बदल रही है वह संतोषजनक नहीं हैं, गुरु स्वराशि से नीच राशि में जा रहें हैं. जहां पर पहले से ही जनमानस के स्वामी शनि स्वग्रही और रक्त के स्वामी मंगल उच्च के हैं. शनि मंगल कि युति को अंगारक भी कहा गया है. पृथ्वी तत्व में अंगारक और उस अंगारक में गुरु यानी जीव पहुंचेगा तो व्यथित होगा परेशान होगा. 28 मार्च को शुक्र यानी शुक्राचार्य जोकि राहु के गुरु है वह अपने घर वृष में पहुंच कर राहु को कमजोर नहीं होने देंगे.
13 अप्रैल तक पालन करें लॉकडाउन का
महत्वपूर्ण बात यह है कि राहु का डिस्पोजिटर यानी राहु जिसके घर में है उसका मालिक बुध 8 अप्रैल को नीच के हो जाएंगे. दूसरी ओर केतु के डिस्पोजिटर गुरु 30 मार्च को नीच के हो जाएंगे. इन सभी नकारात्मक स्थितियों को भंग करने की दम केवल सूर्य के पास है और 13 अप्रैल को जैसे ही सूर्य उच्च के होंगे वह असुरों को पराजित करेंगें, लेकिन तब तक यानी 30 मार्च से 13 अप्रैल तक बहुत सचेत रहना होगा. डॉक्टरों की माने तो यहीं समय कोरोना वायरस थर्ड स्टेज में आने का होगा.
घर से ही करे सब काम, दिखाएं क्रिएटिविटी
एक ज्योतिषीय व्यावहारिक बात समझने वाली है कि गुरु यानी जीव अभी तक अपने घर में थे और 30 मार्च को उन्होंने अपनी नीच राशि में कदम रख दिया. ऐसे घर में गए हैं जहां पर पहले से ही बहुत प्रभावशाली दो ग्रह उसको डॉमिनेट करने लिये तैयार हैं. एक कर्म का ग्रह है तो दूसरा क्रिएटिविटी का लेकिन जीव को बंधन सा प्रतीत होगा ठीक उसी तरह जनमानस भी लॉकडॉउन में घर पर हैं. शनि और मंगल मजबूत स्थिति को ऐसे समझें कि घर से ही कर्म में एक्टिव रहा है और अपनी क्रिएटिविटी दिखानी है. ग्रहों की स्थिति को देखते हुए 13 अप्रैल को सूर्य उच्च के हो जाएंगे और तभी लॉकडाउन की समय सीमा भी खत्म हो रही होगी तक घर पर ही रहें बिल्कुल बाहर न निकलें.
लेखक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)