Devshayani Ekadashi Puja: हिंदू धर्म में एकदाशी तिथि बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है. आषाढ़ का महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इसमें शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को देवशयनी एकदाशी कहा जाता है. इस बार देवशयनी एकादशी 29 जून को मनाई जाएगी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से ही भगवान विष्‍णु योग निद्रा के लिए क्षीर सागर में चले जाते हैं और फिर चार महीने बाद देवप्रबोधनी एकादशी के दिन उठते हैं.


देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरि शयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. देवशयनी एकादशी का हिन्‍दू धर्म में विशेष महत्‍व है. यह एकादशी अपार सिद्धिदायक गुणों से भरी होती है. जानते हैं कि देवशयनी एकादशी का व्रत करने से हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं कि इस एकादशी का व्रत सबसे पहले किसने किया था.


देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा



पौराणिक कथा के अनुसार सूर्यवंश में मान्धाता नाम के एक चक्रवर्ती राजा थे. उनके राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और इसकी वजह से वहां घोर अकाल पड़ गया. राजा बहुत परेशान हो गए. उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. एक दिन उपाय की तलाश में राजा ब्रह्माजी के पुत्र  अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे. ऋषि ने राजा से आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करने को कहा.


मुनि की सलाह मानकर राजा अपने महल लौट आए और फिर विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया. उस व्रत का प्रभाव जल्द ही देखने को मिला. इस व्रत के प्रभाव से भारी वर्षा हुई और प्रजा को सुख-समृद्धि मिली. इस माह की एकादशी बहुत कल्याणकारी मानी गई है. माना जाता है कि इस व्रत को करने से भोग और परलोक से मुक्ति मिलती है.


देवशयनी एकादशी का महत्व


मान्यताओं के मुताबिक, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. पुराणों के अनुसार, राजा बलि की दयालुता और दानशीलता के भाव से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बलि के आग्रह पर पाताल लोक जाने का निवेदन स्वीकार किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दौरान सृष्टि के संचालक भगवान शिव होते हैं. यही वजह है कि चातुर्मास के समय में भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा की जाती है.


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