(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ekadashi Vrat 2021 : एकादशी में चावल वर्जित क्यों?
Ekadashi Vrat 2021 : एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है. इस व्रत में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है.
Ekadashi Vrat 2021 : वर्ष के चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जाती है, ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी में चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है. एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं, ‘न विवेकसमो बन्धुर्नेकादश्याः परं व्रतं’ यानि विवेक के समान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़कर कोई व्रत नहीं है.
पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्म इंद्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है. एकादशी जगतगुरु विष्णु स्वरूप है, जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है. पांचों ज्ञान इंद्रियां और पांचों कर्म इंद्रियों पर मन का ही अधिकार है. मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है. मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसलिए जलतत्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं. एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्रा जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी. महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसलिए निर्जला एकादशी (वगैर जल पिए हुए) करने का सुझाव दिया था. आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जला व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी. वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है. चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसलिए व्रत करने वाला इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई, वहीं मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं. ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी. यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव है. इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, यही कारण है की जौ और चावल को जीवधारी माना गया है. आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूरत नहीं पड़ती है. केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं. इनको जीवधारी मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरूप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके.
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