कला को पहचान कर ग्रह विशेष की सकारात्मकता लाभ लिया जा सकता है. मुख्य कलाओं में मूर्तिकला, काव्यकला, चित्रकारी, काष्ठकला, स्थापत्य कला और गीत-संगीत व नृत्य कला आती हैं.
कलाप्रिय होना सहज गुण है. कहावत है कि तानसेन न सही कानसेन तो बना ही जा सकता है. अर्थात् कला को समझने की योग्यता तो बढ़ाई जा सकती है. कुछ लोग अच्छे कलाकार होते हैं. देश-दुनिया में विख्यात होते हैं. कला के बलबूते वे सदा याद किए जाते हैं. प्रत्येक कला का विशेष ग्रह से संबंध होता है.
मूर्तिकला और स्थापत्य कला का संबंध मुख्यतः मंगल ग्रह से है. इसे कठोर और पृथ्वी जैसा ग्रह माना है. पत्थर पर नक्काशी, मूर्तिनिर्माण हो मंगल के प्रबलता से ही बड़ी सफलता पाई जा सकती है. अच्छे आर्किटेक्ट और भवन निर्माताओं का मंगल बलवान होता है.
चित्रकारी या कहें पेंटिंग के कारक ग्रह शनिदेव हैं. शनि की प्रधानता से व्यक्ति को रंगों और संवेदनाओं को समझने में बल मिलता है. फोटोग्राफर्स के लिए भी शनि के गुणों बढ़ाना चाहिए.
संगीत और नृत्यकला के लिए प्रधान ग्रह शुक्र और बुध हैं. शुक्र ग्रह का बलवान होना व्यक्ति में सौंदर्यबोध को बढ़ाता है. ऐसे लोग साधारण विषयों में भी अनोखे तथ्य और संयोग जोड़ पाते हैं.बुध लोगों की रुचियों का जानने और समझने में सहायक होता है.
काव्य और लेखन कला में चंद्रमा और बृहस्पति यानि गुरु ग्रह का अधिकाधिक प्रभाव रहता है. हमारे सभी वेद पुराण एवं अन्य धार्मिक सामाजिक महत्व के ग्रंथ ऋषियों और विद्वानों से प्रयासों से हम तक पहुंचे हैंर्। गुरु की प्रधानता है बौद्धिकता और चिंतन देना है। चंद्रमा सृजन और नवाचार का कारक है.