Garuda Purana, Lord Vishnu Niti: मृत्यु जीवन का अटल सत्य है यानी जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है. पृथ्वी पर आए हर एक जीव को इस लोक को छोड़कर जाना पड़ता है. भगवान कृष्ण ने भी गीता उपदेश में आत्मा को लेकर कहा है कि, शरीर नश्वर होता है और आत्मा अमर होती है. यानी मृत्यु के बाद शरीर भले ही नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा जीवित रहती है. अब प्रश्न यह है कि यदि आत्मा जीवित रहती है तो मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है? इसका जवाब आपको हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ गरुड़ पुराण में मिलेगा.
गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ पूछते हैं, नारायण! मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है और आत्मा कितने दिनों के बाद यमलोक पहुंचती है. गरुड़ के सवाल का जवाब देते हुए भगवान विष्णु कहते हैं, मृत्यु के बाद जीवात्मा को यमलोक तक की यात्रा करने में पूरे 47 दिन लग जाते हैं. इन 47 दिनों के दौरान उसे कई तरह की यातनाओं का भी सामना करना पड़ता है.
मृत्यु के पहले मिलते हैं ये संकेत
भगवान बताते हैं कि जब किसी की मृत्यु नजदीक होती है तो सबसे पहले व्यक्ति की आवाज जाती है. इसके बाद मृत्यु से कुछ समय पहले ही व्यक्ति को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है, जिसमें मनुष्य सारे संसार को एक रूप में देखने लगता है और इस तरह से उसके शरीर की सभी इंद्रियां शिथिल हो जाती है. जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो यमलोक से दो दूत आते हैं और दूतों को देख आत्मा शरीर का त्याग कर बाहर निकल जाती है. आत्मा के शरीर त्यागने के बाद यमराज के दूत आत्मा के गले में पाश बांध देते हैं और उसे यमलोक ले जाते हैं.
मृत्यु के बाद तेहरवीं और पिंडदान क्यों जरूरी
मृतक व्यक्ति ने यदि अपने जीवन में पाप कर्म किए होंगे तो यमदूत पापी आत्मा को गर्म वायु और अंधेरे रास्ते से यमलोक ले जाते हैं और मार्ग में उसे कई तरह की यातनाएं झेलनी पड़ती है. इसके बाद आत्मा को आकाश मार्ग से वापस उसके घर छोड़ दिया जाता है. कहा जाता है कि मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा अपने परिवार वालों के साथ पूरे 13 दिनों तक रहती है और मृत्यु के बाद होने वाली अंतिम क्रियाओं और रस्मों को भी देखती है. 13 दिन बाद जब आत्मा का पिंडदान, तेरहवीं और ब्राह्मण भोज आदि किया जाता है तो इसके बाद यमराज के यमदूत आत्मा को फिर से लेने के लिए आते हैं. इसलिए हिंदू धर्म में किसी कि मृत्यु के बाद तेरहवीं और 10 दिनों तक पिंडदान करना जरूरी माना गया है. क्योंकि इससे आत्मा को यमलोक तक की यात्रा करने के लिए शक्ति मिलती है. लेकिन इसके बाद भी यमलोक तक की यात्रा आत्मा के लिए आसान नहीं होती है.
मृत्यु के बाद के वो 47 दिन
जब 13 दिनों के बाद यमदूत आत्मा को यमलोक ले जाने के लिए आते हैं तो आत्मा को सबसे पहले वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है. इस नदी को गंगा नदी का ही रौद्र रूप माना जाता है. यह नदी लाल रंग की होती है क्योंकि इसमें आग की लपटे निकलती रहती है. नदी पार करते हुए आत्मा को खतरनाक जीवों का दंश भी झेलना पड़ता है. इन नदी को पार करने में पूरे 47 दिनों का समय लग जाता है. लेकिन यदि व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में अच्छे कर्म किए हों या गौदान किया हो तो उसे ये यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती. क्योंकि उसी गाय की पूंछ पकड़कर आत्मा वैतरणी नदी को पार करती है.
वैतरणी नदी को पार करने के बाद जब आत्मा यमलोक पहुंचती है तो यहां यमराज उसके कर्मों का लेखा-जोखा करते हैं. इस तरह से जीवनकाल में किए कर्मों के अनुसार यमराज आत्म को स्वर्ग या नरक में भेजते हैं. इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन में हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए. क्योंकि अच्छे कर्मों का फल ना सिर्फ जीवन बल्कि मृत्यु के बाद भी मिलता है. मृत्यु के बाद आपके कर्म ही आपके साथ जाते हैं.
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