Garuda Purana: कितने खंडों में बंटा है गरुड़ पुराण, जानिए ये जरूरी बातें
Garuda Purana: हिंदू धर्म के सभी पुराणों में गरुड़ पुराण को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जिसके अधिपति भगवान विष्णु हैं. गरुड़ पुराण का पाठ करने या सुनने से मनुष्य को मोक्ष और भोग की प्राप्ति होती है.
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Garuda Purana Lord Vishnu Niti: हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में गरुड़ पुराण का अपना एक विशेष महत्व होता है. इसके अधिपति भगवान श्रीहरि विष्णु हैं. यह वैष्णव संप्रदाय से संबंधित ग्रंथ है. गरुड़ पुराण के माहात्म्य में कहा गया है-
यथा सुराणां प्रवरो जनार्दनो यथायुधानां प्रवर सुदर्शनम्।
तथा पुराणेषु च गारुड़ं च मुख्यं तदाहुर्हरितत्त्वदर्शने।।
इसका अर्थ है कि, जैसे देवों में जनार्दन श्रेष्ठ हैं और आयुधों में सुदर्शन चक्र श्रेष्ठ हैं. ठीक उसी तरह पुराणों में गरुड़ पुराण हरि के तत्व निरूपण में मुख्य कहा गया है. इसलिए जो व्यक्ति गरुड़ पुराण के ज्ञान को अर्जित करता है, उसके पास नीतियों का कोश है. जो इसका पाठ करता है या सुनता है उसे भोग और मोक्ष दोनों प्रदान होता है.
गरुड़ पुराण की संरचना
- गरुड़ पुराण में कुल 19 हजार श्लोक हैं. हालांकि वर्तमान पांडुलिपियों में 18 हजार श्लोक ही उपलब्ध है.
- साथ ही इसमें 289 अध्याय हैं जिसे दो भागो में पूर्वखंड और उत्तरखंड में विभाजित किया गया है.
- पूर्वखण्ड में जीव और जीवन के संबंध में 240 अध्याय है. वहीं उत्तरखंड में 49 अध्याय है जो, मृत्यु के बाद जीव की गति और उसके कर्मकाण्डो के संबंध में है.
- गरुड़ पुराण की रचना अग्निपुराण के बाद हुई है.
- कहा जाता है कि सबसे पहले गरुड़ जी ने भगवान श्री विष्णु जी से गरुड़ पुराण की कथा सुनी और इसके बाद अपने पिता महर्षि कश्यप को सुनाई.
गरुड़ पुराण में कितने खंड
गरुड़ पुराण मुख्य रूप से पूर्वखंड (आचारखंड), उत्तर खंड (धर्मकाण्ड-प्रेतकल्प) और ब्रह्माकांड तीन खंडों में विभाजित है. इसके पूर्वखंड में सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र, द्वादश आदित्यों की कथाएं, सूर्य, चंद्रादि ग्रहों के मंत्र, उपासना विधि, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, यज्ञ, दान, तप, जप, तीर्थ और सत्कर्म अनुष्ठान जैसे अनेक लौकिक और परलौकिक फलों का वर्णन किया गया है. इसके साथ ही इस खंड में व्याकरण, छंद, स्वर, ज्योतिष, आयुर्वेद, रत्नसार, नीतिसार आदि जैसे विषयों का भी समावेश है.
गरुड़ पुराण के उत्तरखंड में मृतक की आत्मा के कल्याण के लिए विधिन नियमों का निरूपण किया गया है. मृत्यु के बाद दैहिक संस्कार, पिंडदान, श्राद्ध, सपिण्डीकरण, कर्माविपाक और पापों के प्रायश्चित के विधान आदि के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है. इसके अतिरिक्त इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि का भी वर्णन मिलता है.
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