Garuda Purana: क्या महिलाएं श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान कर सकती हैं, जानें क्या कहता है गरुड़ पुराण?
Garuda Purana: पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध या तर्पण का महत्व है. आमतौर पर पुरुष ही ये काम करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महिलाएं भी पितरों के निमित्त श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं.
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Garuda Purana Lord Vishnu Niti in Hindi: हिंदू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद मृतक का श्राद्ध या तर्पण किया जाना जरूरी होता है. कहा जाता है कि, जब तक मृतक का श्राद्धकर्म, तर्पण या पिंडदान न किया जाए तब तक उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है.
लेकिन आम जनमानस के बीच ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध केवल पुरुष द्वारा ही किया जा सकता है. हालांकि यह धारण पूरी तरह से सही नहीं है. गरुड़ पुराण में महिलाओं द्वारा श्राद्धकर्म, तर्पण या पिंडदान किए जाने की बात कही गई है. हालांकि इसमें कुछ ऐसी परिस्थितियों के बारे में भी बताया गया है, जिसमें महिला द्वारा पिंडदान या श्राद्ध किया जा सकता है.
महिलाओं द्वारा तर्पण या श्राद्ध किए जाने पर क्या कहता है गरुड़ पुराण?
गरुड़ पुराण में कुल 271 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं. गरुड़ पुराण के 11, 12,13 और 14 संख्या के श्लोक में इस बात का उल्लेख मिलता है कि हिंदू धर्म में श्राद्ध का क्या महत्व है, कौन और किस परिस्थिति में श्राद्ध कर सकता है, जोकि इस प्रकार से है-
पुत्राभावे वधु कूर्यात, भार्याभावे च सोदन:। शिष्यों वा ब्राह्म्ण: सपिण्डो वा समाचरेत।। ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृ: पुत्रश्च: पौत्रके। श्राध्यामात्रदिकम कार्य पुत्रहीनेत खग:।
अर्थ है: बड़े या छोटे बेटे या बेटी के अभाव में पत्नी या बहू द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है. लेकिन पत्नी जीवित नहीं हो तो सगा भाई, भतीजा, भांजा भी श्राद्ध कर सकता है. वहीं इनमें से कोई भी नहीं हो तो किसी शिष्य, मित्र या रिश्तेदार द्वारा भी श्राद्ध किया जा सकता है.
गरुड़ पुराण के इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि, महिलाओं के पास भी श्राद्ध या पिंडदान करने का अधिकार है. लेकिन इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियां भी बताई गई हैं. लेकिन तर्पण या श्राद्ध के लिए पहले पुरुष को ही वरीयता दी जाती है.
माता सीता ने भी किया था ससुर का पिंडदान
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इसके बाद राजा दशरथ की आत्मा को शांति मिली थी. वनवास के दौरान जब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता पितृपक्ष के दौरान राजा दशरथ के पिंडदान के लिए गया धाम पहुंचे. लेकिन कुछ समय के लिए श्राद्ध की सामग्री लेने के लिए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी नगर की ओर गए. इस बीच वहां आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का शुभ समय समाप्त होने वाला है. तब राजा दशरथ की आत्मा ने माता सीता को दर्शन दिए और उनसे पिंडदान करने को कहा.
राजा दशरथ की इच्छा का पालन करते हुए माता सीता ने तब फालगु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू की पिंडी बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. इस तरह से शास्त्रों में पुत्र की अनुपस्थिति में पुत्रवधू को पिंडदान या श्राद्ध का अधिकार प्राप्त हुआ.
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