Garuda Purana, Niti Grantha: पृथ्वी पर कोई ऐसा प्राणी नहीं है जिसे मृत्यु का सामान न करना पड़े. जो दुनिया में आया है उसे एक निश्चित अवधि पूरी करने के बाद दुनिया से जाना है.
मृत्यु को रोक नहीं सकते लेकिन अपने कर्मों से इसे संवार जरूर सकते हैं. गरुड़ पुराण ग्रंथ में भगवान विष्णु पक्षी गरुड़राज को बताते हैं कि व्यक्ति अपने कर्मों से ही मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक में स्थान प्राप्त करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक का सुख-दुख भोगने के बाद जीवात्मा का क्या होता है और ये कहां जाती हैं.
कहां है स्वर्ग और नरक लोक
गरुड़ पुराण के अनुसार धरती के ऊपर स्वर्ग लोक है और धरती के नीचे नरक लोक है. नरक लोक को अधोलोक भी कहा जाता है. महाभारत में राजा परीक्षित द्वारा शुकदेवजी से यह पूछे जाने पर कि नकर लोक कहां है, तब वे कहते हैं- नरक त्रिलोक के भीतर है, जो दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे और जल के ऊपर है.
वहां सूर्य पुत्र और शनि के भ्राता यमराज का वास होता है जो दूतों द्वारा लाए जीवात्मा को उनके बुरे कर्मों का दंड देते हैं. तमिस्रा, अन्धतामिसरा ,रौरव , महारौरव, कुम्भीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन ,सुकरमुख, अंधकूप ,क्रमिभोजन, सनडांस, तप्तसुरमी, वज्रकांतका, वैतरणी ,पुयोडा, लालभक्ष , सरमेदाना, अयहपना, रकसोगना भोजन ,सुलप्रोत, दंडसुका, अवतनिरोधन, पर्यवर्तन, सुचिमुख, अविचि , कसरदमना आदि जैसे कई प्रकार के नरक होते हैं. इसमें कर्मों के लेखा-जोखा के अनुसार जीवात्मा को दंड दिया जाता है.
नरक में दंड भोगने के बाद कहां जाती है आत्मा
हमने पुराणों में पढ़ा है कि जीवन में बुरे कर्म करने वालों को मरने के बाद नरक की प्राप्ति होती है. लेकिन नरक के बाद फिर आत्मा कहां जाती है या नरक आत्मा का स्थाई स्थान बन जाता है. ग्रंथों के अनुसार नरक वह स्थान नहीं है जहां आत्मा को स्थाई रूप से रहना होता है. जैसे ही जीवात्मा के पापकर्म का दंड पूरा हो जाता है उसे फिर से मर्त्यलोक आना होता है और जीवन फिर से शुरु करना होता है.
क्या मृत्यु के बाद नरक-स्वर्ग ही है स्थाई स्थान
आत्मा के लिए नरक या स्वर्ग दोनों में कोई भी स्थायी स्थान नही होता है. आत्मा का यहां आना- जाना केवल पाप और पुण्य कर्मों को भोगना होता है. यदि आत्मा स्वर्ग में जाती है तो भी वहां अनंत समय तक नहीं रहना होता है. जैसे ही उसके सद्कर्मों का प्रभाव खत्म हो जाता है फिर आत्मा भूलोक लौटती है. पृथ्वी पर आत्मा का इसी तरह आना जाना और योनि प्राप्त करना लगा रहता है, जब तक कि वह सद्कर्मो से मोक्ष न प्राप्त कर ले.
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