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Flu Virus: संक्रामक बीमारियों का जिम्मेदार है बृहस्पति-केतु योग, ज्योतिष आकलन से जानें H3N2 वायरस का भारत पर कितना प्रभाव?

H3N2 Virus:दुनियाभर में कोरोना के बाद H3N2 वायरस से डर का माहौल है. डाॅ.अनीष व्यास ने बताया कि, संक्रामक रोगों का जिम्मेदार बृहस्पति-केतु का योग है. जानते हैं H3N2 वायरस का भारत पर कैसा प्रभाव पड़ेगा.

H3N2 Virus Prediction: कोविड-19 के मामले पिछले कुछ समय से कम हुए ही थे कि एक नए वायरस के मामले बढ़ने लगे हैं, जिसे लेकर देश-दुनिया में एक बार फिर से भय और चिंता की स्थिति है.  इस नए वायरस का नाम है एच3एन2 (H3N2) जो इन्फ्लुएंजा ए वायरस का ही एक प्रकार है.  इस वायरस के संक्रमित होने पर रोगी में फ्लू के लक्षण जैसे कि, तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, थकान और सूखी खांसी जैसे लक्षण नजर आ रहे हैं. ये लक्षण शरीर में तीन सप्ताह तक बने रहते हैं.

इस बीच देश में एक बार फिर कोरोना के मामले भी बढ़ने लगे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए मीटिंग बुलाई. वही देश की चिंता H3N2 वायरस ने भी बढ़ा दी है. इन दिनों पूरे देश में इन्फ्लूएंजा कहर बरपा रहा है. लोग H3N2 इन्फ्लूएंजा वायरस से तेजी से संक्रमित हो रहे हैं. इस फ्लू बच्चे, जवान, बुजुर्ग हर किसी को प्रभावित हो रहे हैं. लोग बुखार, खांसी, कफ से परेशान हो रहे हैं. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं यह यह इन्फ्लूएंजा वायरस भारत के लिए नया खतरा तो नहीं बन रहा.

अभी लोगों के मन से कोरोना का भय गया नहीं था और अब यह इन्फ्लूएंजा आकर लोगों को और डरा रहा है. कोरोना की पहली, दूसरी और तीसरी लहर के पश्चात लोगों के मन में एक ही सवाल है कि इस कोरोना वायरस से कब मुक्ति मिलेगी. वैज्ञानिक और डॉक्टर लगातार इसके सफलतम इलाज खोजने में लगे हुए हैं. वहीं ज्योतिषी इस पर ज्योतिष आंकलन भी कर रहे हैं.

कोरोना नए वायरस का भारत पर कैसा प्रभाव रहेगा. इस बात को लेकर लोगों में अलग-अलग तरह की धारणा है. कभी तो संक्रमण के मामले कम हो जाते हैं तो कभी किसी दिन काफी बढ़ जाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि नए वायरस का कितना प्रभाव रहेगा. क्या भारत इस वायरस को पटखनी देने में सफल होगा या कोराना फिर अपना दम दिखाएगा?

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, वैदिक ज्योतिष में मौसमी बीमारी का कारक बुध को माना गया है, वहीं केतु रहस्यमयी बीमारी का कारक है. शनि वायु प्रधान है जो चीजों को गति देते हैं. जीव कारक गुरु मनुष्य को प्राण देते हैं, वहीं शुक्र संजीवनी का स्वामी होने के कारण विचारणीय ग्रह है. इस देश में कोरोना के मामले शनि के नक्षत्र बदलते ही बढ़ने शुरू हो गए हैं. दरअसल शनि इस समय राहु के नक्षत्र में गोचर कर रहे हैं और राहु पर उनकी नीच की दृष्टि भी है. राहु उग्र राशि मेष में विराजमान हैं तो जाहिर सी बात है कि कोरोना के केस गति पकड़ने लगे हैं. इसके अलावा  H3N2 वायरस की जब हम बात करते हैं तो उसमें बुध की भूमिका नजर आ रही है. बुध ने 16 मार्च को अपनी नीच राशि में प्रवेश किया. इस समय मीन राशि में गुरु, सूर्य और बुध विराजमान हैं और शनि द्वादश भाव में वहीं राहु दूसरे भाव में है.

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, मौसमी बीमारी का कारक बुध इस समय पाप कर्तरी योग में है और केतु बुध का षडाष्टक योग बना हुआ है. इसलिए ये संकेत स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहे हैं कि किसी रहस्य से जुड़ी बीमारी में इस समय वृद्धि होगी. अगर हम और गहराई से समझे तो 28 मार्च को जीव कारक गुरु अस्त हो रहे हैं, जिसका प्रभाव बीमारी के प्रसार के रूप में देखा जा सकता है. गुरु 22 अप्रैल को अस्त अवस्था में ही मेष राशि में प्रवेश कर रहे हैं और राहु के साथ युति कर गुरु चांडाल योग का निर्माण करेंगे. 31 मार्च से बुध भी जड़त्व योग का निर्माण कर शनि से दृष्ट होंगे. इस समय मंगल भी बुध की राशि में विराजमान होकर रक्त से जुडी बीमारी में वृद्धि कर रहे हैं. ऐसे में यह स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है कि अप्रैल और मई में यह बीमारी अपने उच्चस्तर पर होगी और 15 मई के बाद मरीजों की संख्या घटनी शुरू हो जायेगी.

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, भारत में सामान्यत: फ्लू का सीजन नवंबर से फरवरी (सर्दियों में) तथा जून से सितंबर (वर्षा ऋतु) के मध्य साल में दो बार रहता है. पिछले दो वर्षों में कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण फ्लू के मामलों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया. किंतु इस वर्ष फरवरी के महीने से ही गले के रोगों और मौसमी बुखार के मामले बढ़ने लगे हैं. मार्च के मध्य में तापमान के बढ़ने के बावजूद भी इन्फ्लूएंजा संक्रमण रुकने का नाम नहीं ले रहा है.

बृहत् संहिता के अनुसार शुक्र से आगे गुरु का गोचर गले के रोग, कफ, विकार तथा ओला दृष्टि का योग बनता है. अगले कुछ दिनों में उत्तर और मध्य भारत में ओला वृष्टि से खड़ी फसलों को कुछ नुकसान पहुंच सकता है. जैसा कि पिछले दिनों देखने में आया है कि फरवरी के मध्य से देश के कई हिस्सों में इन्फ्लूएंजा वायरस के चलते गले और कफ के रोग तेजी से बढ़ रहे हैं.

बृहस्पति और केतु ग्रह हैं संक्रामक बीमारियों के जिम्मेदार

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, ज्योतिष में राहु और केतु दोनों को संक्रमण (बैक्टीरिया, वायरस) इंफेक्शन से होने वाली सभी बीमारियों और छिपी हुई बीमारियों का ग्रह माना गया है. बृहस्पति जीव और जीवन का कारक ग्रह है जो हम सभी व्यक्तियों का प्रतिनिनधित्व करता है. इसलिए जब भी बृहस्पति और राहु या बृहस्पति और केतु का योग होता है तब ऐसे समय में संक्रामक रोग और ऐसी बीमारियां फैलती हैं, जिन्हें चिहि्नत करना अथवा समाधान कर पाना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन इसमें भी खास बात ये है कि राहु के द्वारा होने वाली बीमारियों का समाधान आसानी से मिल जाता है. लेकिन केतु को एक गूढ़ और रहस्यवादी ग्रह माना गया है. इसलिए जब भी बृहस्पति और केतु का योग होता है तो ऐसे में इस तरह के रहस्मयी संक्रामक रोग सामने आते हैं, जिनका समाधान आसानी से नहीं मिल पाता और ऐसा ही हो रहा है इस समय कोरोना वायरस के केस में.

कोरोना वायरस के कारण को ऐसे समझिए

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, मार्च 2019 से ही केतु धनु राशि में चल रहा है. लेकिन 4 नवंबर 2019 को बृहस्पति का प्रवेश भी धनु राशि में हो गया था, जिससे बृहस्पति और केतु का योग बन गया था जोकि रहस्मयी संक्रामक रोगों को उत्पन्न करता है. 4 नवंबर को बृहस्पति और केतु का योग शुरू होने के बाद कोरोना वायरस का पहला केस चीन में नवबंर के महीने में ही सामने आया था. यानि के नवंबर में बृहस्पति-केतु का योग बनने के बाद ही कोरोना वायरस सक्रिय हुआ.

इसके बाद एक और नकारात्मक ग्रहस्थिति बनी जो था 26 दिसंबर को होने वाला सूर्य-ग्रहण जिसने कोरोना वायरस को एक महामारी के रूप में बदल दिया. 26 दिसंबर को हुआ सूर्य ग्रहण सामान्य नहीं था क्योंकि इस सूर्य ग्रहण के दिन छःग्रहों के (सूर्य, चन्द्रमा, शनि, बुध बृहस्पति, केतु) एकसाथ होने से ष्ठग्रही योग बन रहा था जिससे ग्रहण का नकारात्मक प्रभाव बहुत तीव्र हो गया था. भारत में इसका प्रभाव सीएए और एनआरसी के विरोध-प्रदर्शनों में की गयी हिंसा के रूप में दिखा. साथ ही कोरोना वायरस के मामले भी बढ़ते गए. कुल मिलाकर नवंबर में केतु-बृहस्पति का योग बनने पर कोरोना वायरस सामने आया और 26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण के बाद इसने एक बड़ी महामारी का रूप धारण कर लिया.

इससे पहले भी ऐसे ग्रह योग ने मचाई थी तबाही

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, साल 1918 में स्पैनिश फ्लू नाम से एक महामारी फैली थी जिसकी शुरुआत स्पेन से हुई थी. इस महामारी से दुनिया में करोड़ों लोग संक्रमित हुए थे. उस समय भी बृहस्पति-केतु का योग बना हुआ था. साल 1991 में ऑस्ट्रेलिया में माइकल एंगल नाम का बड़ा कम्प्यूटर वायरस सामने आया था, जिसने इंटरनेट और कम्यूटर फील्ड में वैश्विक स्तर पर बड़े नुकसान किये थे और उस समय भी गोचर में बृहस्पति-केतु का योग बना हुआ.

साल 2005 में एच-5 एन-1 नाम से एक बर्डफ्लू फैला था और उस समय में भी गोचर में बृहस्पति-केतु का योग बना हुआ था. ऐसे में जब भी बृहस्पति-केतु का योग बनता है उस समय में बड़े संक्रामक रोग और महामारियां सामने आती हैं. 2005 में जब बृहस्पति-केतु योग के दौरान बर्डफ्लू सामने आया था तब बृहस्पति-केतु का योग पृथ्वी तत्व राशि में होने से यह एक सीमित एरिया में ही फैला था. जबकि 4 नवंबर को बृहस्पति-केतु का योग अग्नि तत्व राशि (धनु) में बना है जिस कारण कोरोना वायरस आग की गति से पूरे विश्वभर में फैलता गया.

इन्फ्लूएंजा वायरस से राहत 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के समय मीन लग्न उदित हो रहा था. साथ ही मीन लग्न में शुभ ग्रह गुरु विराजमान थे. गुरु की यह स्थिति बता रही है कि जल्द ही देश को इन्फ्लूएंजा वायरस से मुक्ति मिलेगी. सूर्य मीन राशि में 15 मार्च को भारतीय समयानुसार सुबह 6:35 मिनट पर प्रवेश कर चुके हैं.

सूर्य के मीन राशि में प्रवेश की कुंडली में केतु का अष्टम भाव में होना कुछ चिंता का कारण है. केतु पर दूसरे भाव में अष्टमेश और तृतीयेश शुक्र की दृष्टि फ्लू के मामलों में कुछ कमी लाएगी. लेकिन कुछ राज्यों में कोरोना के प्रभाव जैसी चिंताजनक स्थिति बन सकती है. संक्रांति की कुंडली में धन स्थान यानी कुंडली के दूसरे भाव में बैठे अष्टमेश शुक्र और राहु पर हानि स्थान यानी बाहरहवें घर से पड़ रही शनि की तीसरी दृष्टि के प्रभाव से महिलाओं के प्रति आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो सकती है.

साथ ही कुछ आर्थिक घोटाले अगले 30 दिनों में खूब चर्चित होंगे. संयोग से आजाद भारत की वृषभ लग्न की कुंडली में वर्तमान में चंद्रमा में केतु की अंतर्दशा चल रही है जो जुलाई के मध्य तक है. इस केतु की अंतर्दशा के प्रभाव से वर्षा ऋतु में जून-जुलाई के समय दक्षिण भारत में इन्फ्लुएंजा वायरस के मामले बढ़ सकते हैं. लेकिन उत्तर भारत में इस दौरान गर्मी बढ़ने के चलते यह फ्लू कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखाएगा.

इनका करें उपयोग

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, शास्त्रार्थ उल्लेख है कि हमारे जीवन में कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिनमें किसी भी नकारात्मक वस्तु को रोकने की शक्ति होती है और इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होती है. यह आसानी से कहीं पर भी मिल जाती है. ज्योतिष शास्त्र में हींग, प्याज, अदरक, नींबू, लहसुन, तुलसी, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, इलायची और राई को किसी भी संक्रमण और नकारात्मक ऊर्जा का काट बताया गया है. सरसों के तेल की मालिश अपने हाथ, पीठ, छाती और पैरों पर जरूर करें. जीवन से बढ़कर कोई भी आवश्यक वस्तु नहीं है. भीड़-भाड़ से दूर रहना, मास्क और सैनिटाइजर का प्रयोग करने में हम सबकी भलाई है. कोविड वैक्सीन जरूर लगवाएं.

क्या करें उपाय

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास बताते हैं कि, हं हनुमते नमः, ऊॅ नमः शिवाय, हं पवननंदनाय स्वाहा का जाप करें. महामृत्युंजय मंत्र और दुर्गा सप्तशती पाठ करना चाहिए. माता दुर्गा, भगवान शिव और हनुमानजी की आराधना करनी चाहिए. घर पर हनुमान जी की तस्वीर के समक्ष सुबह और शाम आप सरसों के तेल का दीपक जलाएं.

सरसों के तेल का दीपक सुबह 9:00 बजे से पहले और सांयकाल 7:00 बजे के बाद जलाना है. गोमूत्र, कपूर, गंगाजल, नमक और हल्दी मिलाकर प्रतिदिन घर में पोछा लगाएं. घर के मुख्य द्वार के दोनों साईड (अंदर-बाहर) बैठे हुए पंचमुखी बालाजी की तस्वीर लगाएं. ईश्वर की आराधना संपूर्ण दोषों को नष्ट और दूर करती है.

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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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