Shani Ki Sade Sati: 20 अक्टूबर 2020 को मंगलवार का दिन है. सभी जानते है कि मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है. मंगलवार की पूजा से हनुमान जी अतिप्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं, उनके संकटों को दूर करते हैं. आज का दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि आज नवरात्रि का चौथा दिन है. इस दिन मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाती है. नवरात्रि में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से नव ग्रह शांत होते हैं.


मिथुन, तुला, धनु, मकर और कुंभ पर हैं शनि भारी
मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है जबकि धनु, मकर और कुंभ राशि शनि की साढ़ेसाती चल रही है. शनि की ढैय्या और शनि की साढ़ेसाती जिस राशि पर होती है शनि उसके जीवन में तरह तरह की बाधाएं पैदा करते हैं. व्यक्ति बुरी तरह से परेशान हो जाता है. हर मोर्चे पर उसे हानि का सामना करना पड़ता है.


हनुमान जी की पूजा से शनि क्यों होते हैं प्रसन्न, जानें कथा
पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव ने एक बार हनुमान जी के साथ शरारत कर दी. हनुमान जी जब भगवान राम की भक्ति में लीन थे तो शनि ने वहां आकर बाधा उत्पन्न करने की कोशिश की. शनि देव को हनुमान जी ने विनम्रता से समझाया लेकिन शनि देव नहीं माने और बाधा उत्पन्न करते रहे. तब हनुमान जी ने क्रोध में आकर शनि देव को अपनी पूंछ में जकड़ लिया और शनि देव लहुलुहान हो गए. पूजा समाप्त करने के बाद हनुमान जी शनि देव को मुक्त कर दिया. शनि देव को अपनी गलती का अहसास हुआ और हनुमान जी से माफी मांगी. तब हनुमान जी ने शनि देव से वचन लिया कि वे राम भक्त को कभी परेशान नहीं करेंगे तब शनि देव ने कहा प्रभु न तो वे कभी प्रभु राम के भक्तों को परेशान करेंगे और न ही हनुमान भक्तों को पीड़ा पहुंचाएंगे. तभी से शनि देव उन लोगों को परेशान नहीं करते हैं जो भगवान राम और हनुमान जी की पूजा करता है. इसलिए शनि की अशुभता को कम करने के लिए हनुमान जी की पूजा शनि उपाय के तौर पर मानी गई है.


शनि देव का दान
शनि देव पर सरसों का तेल चढ़ाने को लेकर भी एक कथा है. ऐसी मान्यता है जब हनुमान जी ने शनि देव को लहुलुहान कर दिया तो शनि देव ने हनुमान जी से चोटों को ठीक करने के लिए सरसों का तेल मांगा जिसे वे अपने घावों पर लगा सकें. हनुमान जी ने ऐसा ही किया, सरसों का तेल लगाते हैं शनि देव के घाव भरने लगे. इसीकारण शनि देव को सरसों का तेल चढ़ाया जाता है. ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं.


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