Health Astrology: जल स्नान स्वतः कोई धर्म न हो पर धर्म से इसके गहरे संबंध को नकारा नहीं जा सकता.हमारे ऋषि-महर्षियों ने लाखों वर्ष पूर्व जल तथा स्नान के महत्व को प्रतिपादित किया था. प्रत्येक कार्य के आरम्भ से जल-स्नान, जल आचमन, जल पूजन की प्रणाली प्रचलित कर इसे धार्मिक परम्परा का अभिन्न अंग महान ऋषियों ने बना दिया.
योगी याज्ञवल्क्य के अनुसार ‘वेद, स्मृति में कहे गये समस्त कार्य स्नान मूलक हैं, अत एव लक्ष्मी, पुष्टि तथा आरोग्य की वृद्धि चाहने वाले मनुष्य को स्नान सदैव ही करना चाहिए.' याज्ञवल्क्य का ही कथन है कि रूप, तेज, बल, पवित्रता, आयु, आरोग्य, विर्लोमता, दुःस्वप्न का नाश, यश, मेधा ये दस गुण स्नान करने वालों को प्राप्त होते हैं. ग्रहों के अनुसार जल स्नान कैसे करें, आइए जानते हैं-
ऋषियों के अनुसार प्रातःकाल स्नान करने वाले को दृष्ट देह की स्वच्छता, भूत-प्रेतादि की बाधा शांत होने का अदृष्ट दोनों फल प्राप्त होते हैं. याज्ञवल्क्य का कथन है कि प्रातःकाल स्नान करने के बाद मनुष्य शुद्ध होकर जप, पूजा-पाठ आदि समस्त कर्मों के योग्य बन सकता है. नवछिद्र वाले अत्यन्त मलिन शरीर से दिन-रात मल गिरता रहता है. अतः प्रातःकाल स्नान से शरीर की शुद्धि होती है. किस जल से स्नान करें इस बारे में भी हमारे महान ऋषियों ने मार्गदर्शन किया है. गाग्र्य ऋषि तीर्थों के जल में स्नान का परामर्श देते हैं. मनु ने गर्म जल से स्नान का निषेध किया है. मनु का इस संदर्भ में कथन है- ‘संश्रंति, शनिवार, सप्तमी, चन्द्र, सूर्य ग्रहण में, आरोग्य में तथा पुत्र एवं मित्र के निमित्त गर्म जल में स्नान न करें.' विष्णु स्मृति के अनुसार ‘बहते हुए जल वाली नदियों में धारा के सामने होकर स्नान करें, किन्तु तालाब आदि में सूर्य के सामने खड़े होकर स्नान करना चाहिए.'
ज्योतिष शास्त्र के विशेष मत के अनुसार यदि जल स्नान प्रत्येक ग्रह के अनुसार किया जाए तो इससे ग्रह कृपा, उसकी प्रसन्नता, रोग-कष्ट अस्वस्थता-आपदा से मुक्ति, सुरक्षित रहने के लाभ प्राप्त होना भी सम्भव हैं. जैसे-
- सूर्य- मनःशिला, बड़ी इलायची, देवदारू, कुंकुम, केसर, खस, बड़ी मधुमक्खी का शहद, कमल तथा लाल पुष्पों से स्नान करने से विषम भास्कर शुभ होता है.
- चंद्र- दुग्ध, दधि, घृत, गोमय आदि पंचागव्य में हाथी का मल मिलाकर शंख, सीप, सफेद कमल या स्फटिक को डालकर उस जल से स्नान करें.
- मंगल- बिल्व, चंपक, बलारूण के पुष्प, हिंगलु कल्क तथा बकुल से स्नान करने पर दोष का निवारण होकर शुभ फल मिलता है.
- बुध- अक्षत, गोबल, कमल, कोई फल, चंदन, शहद, सीप, भवमूल तथा स्वर्ण मिश्रित जल से आपाद स्नान करने से बुध की अशुभता का उन्मूलन हो जाता है.
- बृहस्पति- मालती के पुष्प सफेद सरसों, मदयन्ति या मेहंदी के पल्लव, शहद, मनःशिला को पानी में डालकर नहाने से बृहस्पति के दोष का परिहर हो जाता है.
- शुक्र- जातक को बड़ी इलायची, मनःशिला, फल-मूल तथा कुंकुम मिश्रित जल से स्नान करने पर शुक्र शुभकारक तथा प्रभावी हो जाता है.
- शनि- जातक को काले तिल, अंजन, लोध्र, बला, सौंफ, धान्य के लावकों को पानी में डालकर स्नान करना चाहिए.
- राहु- लोध्र, कुश, तिल के पत्तो, मुस्ता, हाथी के मदजल, मृग की नाभि का पानी मिलाकर स्नान करना लाभप्रद है.
- केतु- राहु के लिए विहित उक्त वस्तुओं में बकरे का मूत्र मिलाकर स्नान किए जाने से दुष्प्रभाव का निवारण हो जाता है.
स्नान कैसे करें
शास्त्रों के अनुसार स्नान के समय शरीर पर साधारण वस्त्र होना चाहिए.जल लेकर सर्वप्रथम सिर को भिगोना चाहिए, इसके अनन्तर हाथ-पांव धोने चाहिएं. पहले सिर पर पानी डालना इसलिये आवश्यक है कि सिर पर जल पड़ने से वहां बढ़ी हुई गर्मी पांवों के रास्ते निकलकर शान्त हो जाती है. यदि ऐसा न करके पहले पांव धोये जाएं तो पांवों की गर्मी सिर में चली जाती है, जिससे मस्तिष्क विकार की आशंका रहती है. सिर, हाथ, पांव धोने के बाद पूरे शरीर को भिगोकर किसी खुरदुरे कपड़े से अच्छी तरह रगड़ना चाहिए, फिर शरीर पर खूब पानी डालना चाहिये. इससे पानी खुले रोग छिद्रों के रास्ते अंदर जाकर अपेक्षित जलीय अंश की आपूर्ति कर देगा. माना गया है कि श्रावण भाद्रपद महीनों में समुद्र में मिलने वाली नदियों के अतिरिक्त नदियां रजस्वला हो जाती हैं, इसलिए उनमें स्नान नहीं करना चाहिये. स्नान के समय आस्तिकजनों द्वारा बोले जाने वाला श्लोक-
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरि! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! काबेरी! जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू।