Hindu Mythology Story: शास्त्रों में अहंकार को एक रोग बताया गया है. अहंकार मनुष्य की बुद्धि हर लेता है. व्यक्ति स्वयं को ही श्रेष्ठ समझने की भूल कर बैठता है. इसका परिणाम उसे भोगना भी पड़ता है. आज ऐसे ही एक अहंकारी राजा की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे पौराणिक कथाओं में हिरण्यकश्यप के नाम से जाना जाता है. हिरण्यकश्यप का कथा जीवन में बड़ी सीख देती है. 


बहुत समय पहले हिरण्यकरण वन नामक एक राज्य था. जिस का राजा दैत्य हिरण्यकश्यप था. इसे हिरण्यकशिपु के नाम से भी जानते हैं. हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था. उसकी इच्छा थी कि उसकी भी पूजा भगवान की तरह ही की जाए. हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रहलाद था.



प्रहलाद आरंभ से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था. उसने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से मना कर दिया. प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे और उनकी की पूजा करते थे. वे उनकी भक्ति में लीन रहते थे. प्रहलाद की भक्ति की खबर जब पिता हिरण्यकश्यप को हुई तो उसने प्रहलाद को यातनाएं देना शुरू कर दिया. प्रहलाद फिर भी नहीं माने. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को जलती आग में बैठने के लिए कहा. होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती है.


हिरण्यकश्यप के कहने पर जैसे ही होलिका, प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी तो वह जलने लगी. भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु की स्तुति करते रहे. इस प्रकार से होलिका जलकर राख हो गई लेकिन भक्त प्रहलाद को आग छू भी न सकी.मान्यता है कि तभी से होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है. 


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हिरण्यकश्यप को प्राप्त था विचित्र वरदान
राजा हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर विचित्र वरदान मांग लिया. इस वरदान में उसने मांगा कि ना उसे कोई मानव मार सके, और ना ही कोई पशु, ना रात और न ही दिन में उसकी मृत्यु हो, उसे कोई भी ना घर के भीतर और ना बाहर मार सके, इतना ही नहीं उसने ये भी मांगा कि ना धरती पर और ना ही आकाश में, ना किसी अस्त्र से और किसी शस्त्र से उसकी मौत हो.


हिरण्यकश्यप वरदान मिलने के बाद भयंकर घमंड हो गया. वो किसी को कुछ नहीं समझता था. वो इस कदर अहंकार में डूब गया कि वह स्वयं को भगवान मानने लगा. अपनी प्रजा से उसने खुद को भगवान की तरह पूजने का आदेश दिया. उसने सभी पर अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया. स्थिति ये बनी कि उसके अत्याचार से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि करने लगे.


नरसिंह अवतार (Narsimha Avatar)
होलिका की घटना के बाद भी हिरण्यकश्यप का अंहकार और अत्याचार कम नहीं हुआ. प्रहलाद ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि वे सही मार्ग पर चलें. लेकिन प्रहलाद की बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. एक दिन उसने प्रहलाद से कहा कि तेरे भगवान अगर सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में वो क्यों नहीं दिखते. इतना कहते ही उसने उस स्तंभ पर प्रहार किया. तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए. जो आधा मानव आधा शेर का रूप था. उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे राजमहल की दहलीज पर ले गए. भगवान नरसिंह ने उसे अपनी जांघों पर पटका और उसके सीने को नाखूनों से चीर दिया.


नरसिंह रूप में जब भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया, उस समय वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, ना दिन था और ना रात, भगवान नरसिंह ना पूरी तरह से मानव थे और न ही पशु. नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को ना धरती पर मारा ना ही आकाश में बल्कि अपनी जांघों पर मारा. मारते हुए शस्त्र-अस्त्र नहीं बल्कि अपने नाखूनों का इस्तेमाल किया.


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