Holashtak: होलाष्टक की शुरुआत 27 फरवरी से होगी. यह फाल्गुन मास की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा यानी होलिका दहन तक रहता है. होलिका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाएगा. होली के पहले के 8 दिनों को होलाष्टक कहा जाता है. इन 8 दिनों को बहुत अशुभ माना जाता है. इस समयावधि में किसी भी तरह के शुभ काम करने की मनाही होती है. होलाष्टक खत्म होने के बाद 8 मार्च को होली मनाई जाएगी. आइए जानते हैं होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के बारे में.


होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक कथाएं


प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप असुर जाति का अत्याचारी और निर्दयी राजा था जिससे वहां की प्रजा बहुत दुखी थी. वो लोगों को खुद की पूजा करने के लिए कहता था जबकि उसका बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उनकी साधना में मग्न रहता था. प्रहलाद की भक्ति से हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित रहता था. अपने पुत्र की भक्ति को भंग करने और उसका ध्यान अपनी ओर करने के लिए उसने लगातार 8 दिनों तक उसे कई तरह की यातनाएं दीं. 


होलाष्टक ये 8 दिन उन्हीं यातनाओं के दिन माने जाते हैं. यही वजह है कि इन 8 दिनों में किसी भी तरह के शुभ काम करने की मनाही होती है. होलाष्टक के आठवें दिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को गोद में लेकर उसे जलाने को कहा. होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को बचा लिया और आग में होलिका जलकर खाक हो गई. तभी से इस दिन होलिका दहन मनाया जाता है.


शिव-कामदेव की कथा


एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, हिमालय पुत्री पार्वती भोलेनाथ विवाह करना चाहती थीं. वहीं देवताओं को यह मालूम था कि ब्रह्मा के वरदान के चलते तारकासुर का वध भी शिव का पुत्र ही कर सकता है परंतु शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे. तब सभी देवताओं के कहने पर कामदेव ने शिवजी की तपस्या भंग करने का निश्चय किया. कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी.


तपस्या भंग होने पर क्रोधित भोलेनाथ ने अपनी तीसरी आंख खोल दी. कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में जलने लगा लेकिन फिर भी कामदेव 8 दिनों तकर हर तरह से शिवजी की तपस्या भंग करने में लगे रहे. अंत में शंकर भगवान ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया. तबसे यह दिन फाल्गुन की अष्टमी के तौर पर मनाई जाती है.


बाद में देवी-देवताओं ने भोलेनाथ को तपस्या भंग करने का कारण बताया. शिवजी ने पार्वती को देखा और उनकी आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया. इसीलिए होली को सच्चे प्रेम का विजय उत्सव मानकर भी मनाया जाता है.


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