(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Holi 2023 Special: होली का सूफी रंग, रैनी चढ़ी रसूल की तो सो रंग मौला के हाथ...
Holi 2023 Special: होली में दुश्मन भी गिले-शिकवे भूलकर गले लग जाते हैं. इसलिए होली पर किसी ने क्या खूब लिखा है, आ मिटा दें दिलों पे जो स्याही आ गई है, तेरी होली मैं मनाऊं, मेरी ईद तू मना ले!
Holi 2023 Special, Hazrat Nizamuddin Auliya Amir Khusro Sufism Holi:
आज रंग है, ऐ मा रंग है री, मोरे महबूब के घर रंग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, जब देखो मोरे संग है री।
दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में आज भी अमीर खुसरो की यह रचना अदब के साथ गाई जाती है. सिर्फ अमीर खुसरो ही नहीं बल्कि कई सूफी संतों और शायरों-कवियों ने होली पर गीत, गजल, ठुमरी और शायरी लिखी है, जिसमें देश की संस्कृति और एकता झलकती है. लेकिन हजरत निजामुद्दीन औलिया के मुरीद और शायर अमीर खुसरो ने सूफीमत परंपरा से बसंत और होली का त्योहार मनाने के रिवाज की शुरूआत की.
खुसरो खुद भी होली खेलते थे. कहा जाता है कि वो गुलाबजल और फूलों के रंग से होली खेला करते थे. होली के लिए खुसरो ने कई सूफियाना गीत लिखे हैं. इस मौके पर सूफी मठों में भी होली खेली जाती थी. सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया ने सबसे पहले अपने मठ में होली मनाई. फिर बाद में होली सूफी संतों का पसंदीदा त्योहार बन गया और आज भी यह सूफी संतों की संस्कृति का अहम हिस्सा है.
कहा जाता है कि एक बार हजरत निजामुद्दीन को भगवान कृष्ण ने सपने में दर्शन दिए. तब उन्होंने खुसरो को बुलाकर श्रीकृष्ण पर हिंदवी जोकि उस समय की लोक भाषा थी, उसपर दीवान लिखने को कहा. तब खुसरो ने हजरत के लिए ‘हालात एक कन्हैया और किशना’ नामक हिंदवी में दीवान लिखा. इसमें खुसरो ने श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन के साथ होली गीत भी लिखे और इन्हीं गीतों को गाकर वे हजरत के साथ होली खेला करते थे. खुसरो होली के रंग को महारंग कहते हैं और अपने गीतों में उन्होंने इसके मनोभाव का भी उल्लेख किया है.
गंज शकर के लाल निजामुद्दीन चिश्त नगर में फाग रचायो,
ख्वाजा निजामुद्दीन, ख्वाजा कुतबुद्दीन प्रेम के रंग में मोहे रंग डारो
सीस मुकुट हाथन पिचकारी, मोरे अंगना होरी खेलन आयो,
खेलो रे चिश्तियो होरी खेलो, ख्वाजा निजाम के भेस मे आयो।
अपने रंगीले पे हूं मतवारी, जिनने मोहे लाल गुलाल लगायो
ख्वाजा निजामुद्दीन चतुर खिलाड़ी बईयां पकर मोपे रंग डारो,
धन धन भाग वाके मोरी सजनी, जिनोने ऐसो सुंदर प्रीतम पायो।
आज रंग है ए मां, रंग है री
मेरे ख्वाजा के घर रंग है री
सजन गिलावरा इस आंगन में
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया
गंज शकर मोरे संग है री...
ये पंक्ति अमीर खुसरो ने अपने आध्यात्मिक गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया के लिए लिखे थे. कहा जाता है कि जिस दिन अमीर खुसरो अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया से मिले थे वह दिन होली का ही दिन था. इस पंक्ति को उन्होंने हजरत की तारीफ में लिखा था.
खुसरो अपने गुरु हजरत के इस कदर मुरीद थे कि, उन्होंने अपनी कलम से जो भी लिखा सब हजरत पर न्यौछावर कर दिया. आज भी खुसरो के गीत देश-विदेश में बहुत शिद्दत और अदब के साथ गाए जाते हैं. अमीर खुसरो ने होली पर भी कई गीत लिखे, जिसके बोल सरल और आत्मीय हैं. इसलिए ये गीत लोगों की जुबां पर चढ़कर बोलते हैं और दिल में उतर जाते हैं.
खुसरों लिखते हैं-
शाह निजाम के रंग में,
कपड़े रंग के कुछ न होत है,
या रंग में तन को डुबोया री.
धरती अंबर घूम रहे हैं, बरस रहा है रंग।
खेलो चिश्तियों होली खेलो, ख्वाजा निजामुद्दीन के संग।।
रैनी चढ़ी रसूल की तो सो रंग मौला के हाथ।
जिनके कपड़े रंग दियो सो धन-धन वा के भाग।।
गोकुल देखा, मथुरा देखा पर तोसा ना कोई रंग देखा
ऐ मैं ढूंढ़ फिरी हूं देस-विदेस में ढूंढ़ फिरी हूं
पूरब देखा, पश्चिम देखा, उत्तर देखा, दक्षिण देखा,
रे मैं ढूंढ़ फिरी हूं
देस विदेस में ढूंढ फिरी हूं
तोरा रंग मन भायो मोइनुद्दीन
मोहे अपने ही रंग में रंग में रंग ले ख्वाजा जी
मोहे रंग बसेती रंग दे ख्वाजा जी
मोहे अपने ही रंग में रंग ले
होली खेलूंगी, ख्वाजा घर आए
धन-धन भाग हमारे सजनी
ख्वाजा आए आंगन मेरे
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