नई दिल्ली: बिना रंगों को होली अधूरी है. 21 मार्च को रंगों के त्योनहार होली को देशभर में मनाया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं होली पर रंग क्यों लगाया जाता है? होली पर रंग लगाने की परंपरा कब शुरू हुई? होली पर क्योंत बनाई जाती है गुझिया? आज गुरूजी पवन सिन्हाु बता रहे हैं इन सबके बारे में.
होली पर रंग लगाने की परंपरा कब शुरू हुई-
गुरूजी के मुताबिक, द्वापर युग में होली पर रंग लगाने की परंपरा शुरू हुई. पहले टेसू के फूल का रंग, कुमकुम का उपयोग किया जाता था. कई सालों पहले रंगों के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं. मुगल काल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था. प्रमाण के मुताबिक, मुगल बादशाहों ने भी होली खेली थी. प्राचीन काल में यज्ञ के बाद गाने गाए जाते थे.
होली पर क्यों बनाई जाती है गुझिया?
भारत की संस्कृति अनेक संस्कृतियों का समावेश है. नए किस्म के व्यंजन समय-समय पर जुड़ गए. पहले गौमाता के दूध और उससे बने व्यंजनों को महत्व दिया जाता था. इन व्यंजनों के साथ आटे का प्रयोग होता था. आपको जानकर हैरानी होगी गुझिया तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों से आया है.
होली के बारे में जानिए कुछ और दिलचस्प जानकारियां -
होली के दिन गाए जाने वाले फाग के गीत कई सालों से चले आ रहे हैं.
मालवा के भगोरिया जिले में अनोखी परंपरा है. भगोरिया परंपरा में लड़का-लड़की एक-साथ भाग जाते हैं. गांव वालों को उन लड़के-लड़कियों को ढूंढना होता है. गांव के लोग अगर लड़के-लड़कियों को नहीं ढूंढ पाते तो उनकी शादी हो जाती है. गुलाबी गुलाल लगाकर भी पार्टनर चुनने की परंपरा है.
भांग से जुड़ी कुछ भ्रांतियां –
गुरूजी के मुताबिक, भांग शंकर भगवान का प्रसाद नहीं है. नशे का भगवान शिव ने कभी समर्थन नहीं किया. अपनी सहूलियत के लिए लोग ऐसा करते हैं. भगवान के नाम पर नशे को फैलाया जाता है.
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