Holika Dahan 2024: 24 मार्च यानी आज होलिका दहन मनाया जाएगा. होली के एक दिन पहले होलिका दहन होती है जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉक्टर अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन के लिए 1 घंटा 20 मिनट का ही समय रहेगा. आज के दिन भद्रा प्रातः 9:55 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:13 तक भूमि लोक की रहेगी.  


होलिका दहन पर बन रहे शुभ योग



होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 के मध्य होगा. होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है. वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है. पूर्णिमा तिथि 24 मार्च सुबह 8:13 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 25 मार्च सुबह 11:44 मिनट तक रहने वाली है.


भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन मुहूर्त 


साल 2024 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 तक है. होलिका दहन के लिए 1 घंटा 20 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा.  


नहीं होते भद्रा में शुभ कार्य


ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है. भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है. पंचांग के 5 प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं. करण की संख्या 11 होती है. 


ये चर-अचर में बांटे गए हैं. इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है. मान्यता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक में होती हैं, तो अनिष्ट करती हैं. भद्रा योग कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टिकरण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है.


होलिका दहन विधि (Holika Puja Vidhi)


ज्योतिषाचार्य ने बताया कि होलिका दहन का तैयारी कई दिनों पहले से होने लगती हैं. होलिका दहन वाले स्थान पर लकड़ियां, उपले और अन्य जलाने वाली चीजों को एकत्रित किया जाता है. इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर विधिवत रूप से पूजन करते हुए होलिका में आग लगाई जाती है. फिर होलिका की परिक्रमा करते हुए पूजा सामग्री को होलिका में डाला जाता है.


होली की पौराणिक कथा (Holika Ki Katha)


ज्योतिषाचार्य ने बताया कि होली का त्योहार मुख्य रूप से विष्णु भक्त प्रह्राद से जुड़ी है. भक्त प्रह्लाद का जन्म राक्षस परिवार में हुआ था, परन्तु वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे. उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के कष्ट दिए. हिरण्यकश्यप ने कई बार भक्त प्रह्राल को मारने की कोशिश की लेकिन हर बार नकामी ही मिली. तब  हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को भक्त प्रह्राद को मारने की जिम्मा सौपा. 


होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी. होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई. भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई लेकिन भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ. इसके प्रथा के चलते हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है.


ये भी पढ़ें


रोगों से मुक्ति पाने के लिए होली की आग में डाल दें ये 1 चीज, मिलेगी निरोगी काया


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.