शनि देव का धैर्यपूर्वक आगे बढ़ने का यह गुण हर क्षेत्र में सफलता का कारक है. प्रत्येक विषय, संबंध और प्रकृति को ऐसे गुण की जरूरत होती है. शनि तीस साल में सभी बारह राशियों पर भ्रमण कर पाते हैं. इसी का प्रभाव है कि शनि भाग्य देवता माने जाते हैं. भाग्य त्वरित बनने वाली वस्तु नहीं है. शनैः शनैः निर्मित होने वाला जीवन का लेखा जोखा है. इसका प्रभाव इतना गहरा होता है कि यह जन्म जन्मांतर बना रहता है.


ऐसे जातक जो हर क्षेत्र में धैर्य और सहजता से जुटे रहते हैं शनि देव उन पर अत्यंत प्रसन्न होते हैं. सफलता के शिखर पर ऐसे लोग सबसे उूंचे पर खड़े नजर आते हैं. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. आज के दौर में और मुश्किल है. हर व्यक्ति तुरंत परिणाम की चाह में धैर्य और ठहराव से समझौता कर लेता है.


ठहराव सिर्फ भौतिक से अधिक मानसिक होता है. ध्यान की सर्वाेच्च अवस्था में ठहराव की असीम अवस्था प्राप्त होती है. शनिदेव इसमें सहायक होते हैं. शिक्षा, खेल, तप, साधना और कौशल विकास में ठहराव की आवश्यकता होती है. महान संगीतज्ञ इसी गुण से जनता की प्रसन्नता पाते हैं. जनता के कारक शनिदेव होते हैं. जीवन में महानता शनि की कृपा से ही संभव होती है. शनिदेव की देवताओं को प्रभावित करने वाली दृष्टि उनकी ठहराव पूर्ण संचार के कारण ही विकसित हुई है. वे एक स्थिति में लगातार एक वस्तु को दृष्टिपात कर पाते हैं. इससे प्रभाव भी गहरा बनता है.