Janeu Benefit: हिंदू धर्म में 16 संस्कारों को जीवन में अपनाना जरूरी बताया गया है. इन्हीं संस्कारों में दसवां, उपनयन संस्कार है. जिसे यज्ञोपवित यानी जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है. जिनका उपनयन संस्कार होता है उन्हें गायत्री मंत्र की दीक्षा मिलती है. इसके बाद उसे आजीवन यज्ञोपवीत धारण करना होता है. हालांकि नई पीढ़ी इसे पहनने से कतराती है. हालांकि नई पीढ़ी के मन में सवाल उठता है कि आखिर इसे पहनने से फायदा क्या होगा? आइए जानते हैं इसका महत्व, फायदे और नियम.


जनेऊ में मुख्‍य रूप से तीन धागे होते हैं. यह तीन सूत्र - त्रिमूर्ति ब्रह्रमा, विष्णु, महेश के प्रतीक - देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं. साथ ही इन्हें गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक भी माना जाता है. इसे पहनने से इन सभी का आशीर्वाद जातक को मिलता है. जनेऊ को बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है. यानी इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे.


जनेऊ पहनने के फायदे



  1. बार-बार बुरे सपने आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है.

  2. जनेऊ धारण करने वाला सफाई नियमों में बंधा होता है. इसकी पवित्रा बनाए रखने के लिए कान पर लपेटते हैं तो दिमाग की नसें एक्टिव हो जाती हैं, जिससे याददाश्त तेज होती है. इसलिए कम उम्र में ही बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार कर दिया जाता है.

  3. टायलेट जाने से पहले जनेऊ को अपवित्र होने से बचाने के लिए उसे खींचकर कानों पर चढ़ाते हैं. कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है. इससे पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है.

  4. मान्यता है कि जनेऊ पहनने वालों के पास बुरी शक्तियां नहीं आती. यज्ञोपवीत की वजह से मानसिक बल भी मिलता है. यह लोगों को हमेशा बुरे कामों से बचने की याद दिलाता रहता है.


जनेऊ पहनने के नियम:



  • जनेऊ पहनने के बाद इसकी पवित्रता का बहुत ध्यान रखना चाहिए.ऐसे में जरूरी है कि मल-मूत्र विसर्जन के दौरान जनेऊ को दाएं कान पर चढ़ा लें. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि जनेऊ कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो. हाथ धोने के बाद ही इसे उतारें.

  • घर में जन्म-मरण के सूतक के बाद इसे बदलने की परंपरा है.

  • खंडित जनेऊ कभी धारण नहीं करना चाहिए. इसलिए जनेऊ का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए तो इसे बदल देना चाहिए.

  • यज्ञोपवीत को साफ करना हो इसे शरीर से उतारें नहीं, गले में पहने रहकर ही घुमाकर धो लें. अगर भूलवश उतर जाए तो इसे बदलने का नियम है.


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