Jaya Ekadashi Vrat: हिंदू धर्म में एकादशी के दिन का खास महत्व होता है. सभी एकादशी में जया एकादशी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है.  इस एकादशी को सभी पापों को हरने वाली उत्तम और पुण्यदायी माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जया एकादशी व्रत करने से बुरे कर्मों के कष्ट दूर होते हैं. इस बार जया एकादशी 20 फरवरी, मंगलवार के दिन मनाई जाएगी.


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जया एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं. इसका व्रत करने से मनुष्यों को मृत्यु के बाद परम् मोक्ष की प्राप्ति होती है. जया एकादशी की व्रत कथा सुनने से जीवन के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं. 


जया एकादशी की व्रत कथा



एक पौराणिक कथा के अनुसार, इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. यहां सभी देवगण और संत उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था. वो बहुत ही रूपवान था. गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठे और अपनी लय-ताल से भटक गए. 


माल्यवान और पुष्यवती के इस कृत्य से देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और उन्हें स्वर्ग से वंचित रहने का श्राप दे दिया. इंद्र भगवान नें दोनों को मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगने का श्राप दिया. श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान प्रेत योनि में चले गए और वहां जाकर दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था. दोनों बहुत दुखी थे. 


एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए.


जया एकादशी की पूजन विधि


जया एकादशी का व्रत करने वाले उपासक को दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें. इसके बाद धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करें. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम का भजन करें. अगले दिन यानी द्वादशी पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए.


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