Kaal Sarp Dosh, Astrology : ज्योतिष शास्त्र में राहु- केतु को सर्प की संज्ञा दी गई है. राहु सर्प का फन और केतु उसकी पूंछ है. कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हो, तो काल सर्प योग बनता है. जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते है, तो लाइफ में एक तरह का लॉक लग जाता है. सभी ग्रह इस लॉक में फंस कर रह जाते है. ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए स्ट्रगल अधिक करना पड़ता है. काल सर्प योग नाम से तो अत्यधिक खतरनाक लगता है, लेकिन उससे बहुत ज्यादा भयभीत होने की जरूरत नही है. यह घातक है पर महाकाल नहीं. कालसर्प योग से डरना या डराना शास्त्र संगत नहीं है क्योंकि यदि कालसर्प दारूण कष्ट देता है, तो साथ ही व्यक्ति को देश में उच्चतम पद, धनसंपदा कीर्ति भी प्रदान करता है. यह जरूर है कि काल सर्प योग के कुप्रभावों से व्यक्ति को सावधान रहते हुए उनका उपाय अवश्य करना चाहिए. आइए जाने कालसर्प के प्रकारों और उनके प्रभावों के विस्तृत रूप से. कौन सा योग कैसे फल देने वाला होता है-


अनंत कालसर्प योग – लग्न से सप्तम भाव तक राहु एवं केतु अथवा केतु एवं राहु के मध्य सूर्य, मंगल, शनि, शुक्र, बुध, गुरू और चंद्रमा स्थित हों तो अनंत नामक काल सर्प योग निर्मित होता है. इस योग से ग्रस्त व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं वैवाहिक जीवन कमजोर होता है. प्रथम व सप्तम भाव के मध्य कालसर्प योग में जन्मा व्यक्ति स्वतंत्र विचारों वाला, निडर होता है व आत्मसम्मान को सदा ऊपर रखता है लेकिन जीवन में संघर्ष करना पड़ता है.


कुलिक कालसर्प योग- द्वितीय से अष्टम भाव तक राहु - केतु या केतु- राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो कुलिक काल सर्प योग बनाता है. इस योग से ग्रस्त व्यक्ति को धन संबंधी परेशानियों और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.


वासुकी कालसर्प योग – तृतीया से नवम भाव तक राहु - केतु या केतु - राहु के मध्य सभी ग्रह स्थित हों, तो कुलिक काल सर्प योग होता है. इस योग से जातक को भाई एवं पिता की ओर परेशानी मिलती है और पराक्रम में कमी आती है.


शंखपाल कालसर्प योग – चतुर्थ से दशम भाव के मध्य राहु - केतु या केतु - राहु के मध्य अन्य सातों ग्रह स्थित हों, तो शंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है. इसके कारण मातृ सुख में कमी आ सकती है. व्यापार व्यवसाय में अवरोध, पद एवं प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है.


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पद्म कालसर्प योग – पंचम तथा एकादश भाव के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रह स्थित होने पद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इससे ग्रस्त व्यक्ति को विद्याध्ययन, संपत्ति सुख और स्नेह संबंधों में कमी आ सकती है.


महापद्म कालसर्प योग – छठवें से बारहवें भाव के मध्य राहु - केतु या केतु - राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से महापद्म नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक को रोग, कर्ज और शत्रुओं का अधिक सामना करना पड़ सकता है.


तक्षक काल सर्प योग – सप्तम से प्रथम के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो तक्षक नामक काल सर्प योग बनता है. इस योग के कारण जातक का वैवाहिक जीवन दुखमय हो सकता है. उसे साझेदारी में हानि भी हो सकती है.


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कर्कोटक कालसर्प योग – अष्टम भाव सें द्वितीय भाव के मध्य राहु- केतु या केतु- राहु के बीच सभी ग्रहों की स्थिति से कर्कोटक नामक कालसर्प योग निर्मित होता है. इससे ग्रस्त व्यक्ति की आयु क्षीर्ण हो सकती है. इसके अलावा बीमारी, धन हानि या वाणी दोष संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है.


शंखचूड़ काल सर्प योग – नवम एवं तृतीया भावों के बीच राहु - केतु अथवा केतु - राहु के बीच अन्य सातों ग्रह स्थित हो, तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है. इस कुयोग के कारण भाग्योदय में अवरोध, नौकरी में दिक्कतें, मुकदमे बाजी से परेशान होना पड़ सकता है.


घातक काल सर्प योग – दशम तथा चतुर्थ भावों के मध्य यदि राहु - केतु या केतु - राहु के बीच सभी ग्रह स्थित हों, तो घातक काल सर्प योग बनता है. यह योग व्यापार में घाटे, प्रतिष्ठा में कमी, अधिकारियों से अनबन और सुख शांति न होने की वजह से परेशान करता है.


विषधर काल सर्प योग – ग्यारहवें से पांचवें भाव के बीच राहु - केतु या केतु - राहु के मध्य सभी ग्रह बैठे हों, तो विषधर कालसर्प योग बनता है. इससे ज्ञानार्जन में रुकावट, परीक्षा में असफलता, संतान सुख में कमी और अनपेक्षित हानि आदि का सामना करना पड़ता है. 


शेषनाग कालसर्प योग – द्वादश से छठवें भाव में कालसर्प में जन्मे व्यक्ति की आंखें अकसर कमजोर होती है, पढ़ाई आदि में अत्यधिक प्रयासों के बाद ही सफलता प्राप्त होती है. इसके कारण व्य़क्ति अपने घर या देश से दूर रहते हुए संघर्ष करता है.


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