Kashi Vishwanath Jyortirlinga, Sawan 2023: काशी विश्वनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में सातवें स्थान पर आता है. काशी विश्वनाथ की महीमा निराली है, मान्यता है कि यहां जिसकी मृत्यु होती है वह मोक्ष को प्राप्त होता है. काशी को बनारस और वाराणसी भी कहा जाता है, ये पाप नाश्नी नगरी कहलाती है.


काशी विश्वनाथ भोलेनाथ की प्रिय नगरी मानी जाती है, शादी के बाद भगवान शिव देवी पार्वती का गौना कराकर पहली बार यहीं आए थे. आइए जानते हैं काशि विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की विशेषता.


सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।


वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥


अर्थात - जो भगवान् शंकर आनन्दवन काशी क्षेत्र में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं, जो परमानन्द के निधान एवं आदिकारण हैं, और जो पाप समूह का नाश करने वाले हैं, मैं ऐसे अनाथों के नाथ काशीपति श्री विश्वनाथ की शरण में जाता हूँ.


शिव के त्रिशुल पर टिकी है काशी


काशी में भगवान शिव ब्रह्मांड के स्वामी के रूप में निवास करता है यही वजह है कि इन्हें काशी विश्वनाथ कहा जाता है. देवभूमि माने जाने वाले काशी गंगा किनारे भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर बसी हुई है. कहते हैं प्रलय आने पर भी इस जगह का विनाश नहीं हो सकता.


भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है भगवान विश्वनाथ की पूजा


शिव और काल भैरव की काशी नगरी अद्भुत है, जिसे सप्तपुरियों में शामिल किया गया है. मान्यता है भगवान ‌विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की उपासना से पहले भैरव बाबा दर्शन जरुरी है. इसके बिना यहां शिव की पूजा अधूरी है. भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं. इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है.


संतों की नगरी है काशी


धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध ने बोध गया से ज्ञान प्राप्त कर काशी में ही अपना पहला प्रवचन दिया था. यहां मौजूद तुलसी घाट पर बैठकर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के कई अध्याय लिखे थे. कबीरदास जी ने भी अपना जीवन काशी में ही बिताया.


शादी के बाद पहली बार काशी आए थे शिव-पार्वती


फाल्गुन माह की रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता गौरा का गौना करवाकर पहली बार काशी आए थे. तब उनका स्वागत रंग और गुलाल से किया गया था. हर साल इस दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरा का धूमधाम से गौना करवाया जाता है. इस दिन को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है. 


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