Navratri Maa Katyayani: मां कात्यायनी का बीज मंत्र, कवच और मंत्र का जाप करने से दूर होती हैं परेशानियां
Navaratri 2020 6th Day: 22 अक्टूबर 2020 को नवरात्रि का छठा दिन है. नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. इस दिन मां कात्यायनी को कुछ विशेष मंत्रों से प्रसन्न कर जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर कर सकते हैं.
Sixth Day Of Navratra Devi: पंचांग के अनुसार 23 अक्टूबर 2020 का दिन बहुत विशेष है. इस दिन ग्रहों की स्थिति की बात करें तो चंद्रमा धनु राशि और सूर्य तुला राशि में गोचर कर रहा है. इस दिन नवरात्रि का छठा दिन है. यह दिन मां कात्यायनी को समर्पित है.
माता कात्यायनी सिंह की सवारी करती हैं. मां कात्यानी की चार भुजाएं हैं, कात्यायनी देवी के बाएं दो हाथों में कमल और तलवार है. जबकि दाहिने दो हाथों से वरद और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं. मां कात्यायनी लाल वस्त्र धारण करती हैं. इनका प्रिय रंग पीला है. मां कात्यायनी ने महिषासुर राक्षस का वध किया था और पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था. मां कात्यायनी बृहस्पति ग्रहों का नियंत्रित करने की क्षमता रखती हैं.
कात्यायनी नाम कैसे पड़ा पौराणिक मान्यता के अनुसार मां कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि को जन्म दिया था, इसलिए इन्हें कात्यायनी कहते हैं. मां कात्यायनी को मां दुर्गा का अवतार माना जाता है. एक अन्य कथा के अनुसार कात्यायनी ऋषि ने सबसे पहले मां कात्यायनी की पूजा थी.
मां कात्यायनी का मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नम:॥
मां कात्यायनी का प्रार्थना मंत्र चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति मंत्र या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥ स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्। वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥ पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्। मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥ प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्। कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
मां कात्यायनी स्त्रोत कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां। स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥ पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्। सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥ परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा। परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥ विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता। विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥ कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते। कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥ कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना। कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥ कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी। कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
कवच मंत्र कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी। ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥ कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥