Ketu in Kundli: केतु एक छाया ग्रह है, जिसे पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. इसे प्रभावी ग्रह भी माना जाता है. इसका कारण यह है कि जब किसी जातक पर केतु का प्रभाव रहता है तो वह स्वत्रंत ढंग से निर्णय नहीं ले पाता और भटकाव की स्थिति में रहता है.


आमतौर पर लोगों में केतु को लेकर ऐसी धारण है कि केतु हमेशा अशुभ फल ही प्रदान करता है लेकिन ऐसा नहीं है. केतु पाप ग्रह होकर भी शुभ फल दे सकता है. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास बताते हैं कि, केतु से जातक को शुभ फल मिलेगा या अशुभ यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि केतु आपकी कुंडली के किस भाव में बैठा है. यानी केतु भाव के स्वामी के अनुरूप ही फल देता है.  


केतु शुभ तो शत्रु चारों खाने चित्त


ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली का छठा भाव (Kundli Sixth House) रोग और शत्रु से संबंधित होता है. इसलिए कुंडली का यह भाव शत्रु, दुश्मन, विरोधियों और कानूनी प्रकिया से लड़ने की शक्ति देता है. इन सभी को हराने के लिए यह जरूरी है इस भाव का स्वामी मजबूत हो. लेकिन कुंडली का छठा भाव और इसका स्वामी लग्न और लग्नेश से बली नहीं होना चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो जातक को शत्रुओं और परेशानियों से विजय पाने में मुश्किल होती है.


ऐसे समझें:-


छठे भाव में कौन सा ग्रह बैठा है यह बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है. यह कुछ मामलों में शुभ तो कुछ में अशुभ भी हो सकता है. ज्योतिष में केतु को अशुभ ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. यदि कुंडली के छठे भाव में केतु यानी अशुभ या बुरा ग्रह बैठ जाए तो भी शुभ फल मिलता है. इसका कारण यह है कि यह घर शत्रु, परेशानी, रोग और विवाद से जुड़ा होता है. ऐसे में जब यहां बुरा ग्रह यानी केतु बैठ जाए तो वह इन चीजों (दुख, परेशानी, शत्रु और विवाद आदि) से लड़ता है और जीत हासिल कराता है. इसलिए कहा जाता है कि कुंडली में केतु बली तो शत्रु चारों खाने चित्त.


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