समुद्र मंथन के दौरान देवताओं की लाइन में लगकर चालाकी से एक राक्षस ने अमृत पान कर लिया था. इस पर भगवान विष्णु ने चक्र से उसका सर धड़ से अलग कर दिया. इससे राहु केतु नामक दो ग्रह निर्माण हुए. इन ग्रहों में राहु सिर वाले और केतु धड़ वाले हिस्से निर्मित ग्रह हैं.
केतु के पास सिर नहीं होने से उससे संबंधित परेशानियों को पहचान पाना किसी भी व्यक्ति के अत्यंत कठिन होता है. यदि आप किसी रोग के शिकार हैं तो चिकित्सक के लिए रोग जान पाना कठिन होता है. अन्य आर्थिक व सामाजिक संकट में भी केतु के प्रभाव से हल तक पहुंचना कठिन होता है. उदाहरण स्वरूप जंगल में यदि कोई व्यक्ति दलदल में फंस जाए तो वह धीरे-धीरे उसमें फंसता चला जाता है. वह जितना प्रयास करता है उतना उलझता है. इसके विपरीत वह शांत मन से समस्या पर विचार कर किसी बाहरी सहयोग से सहजता से दलदल से बाहर आ सकता है.
केतु जीवन में ऐसे ही संकटों का संकेतक है. इन संकटों से मुक्ति के लिए केतु के इस मंत्र का जाप करते ध्यानस्थ हों.
धूम्राद्विबाहवः सर्वेगदिनो विकृतानना।
गृध्रागसनगतानित्यं केतवः स्यूर्ववरप्रदाः।।
केतु को छाया ग्रह माना जाता है. इस मंत्र का जाप करने से अंधेरे से डरने वाले लोगों को डर से मुक्ति मिलती है. जिन जातकों की कुंडली में केतु से बना ग्रहण दोष होता उसे अवश्य ही इस मंत्र से केतु का ध्यान करना चाहिए.