Kojagari Puja 2023: आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. इसे कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस बार कोजागरी पूर्णिमा 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में इस पूर्णिमा का खास महत्व होता है. माना जाता है कि इस रात को चंद्रमा से अमृत बरसता है. इस दिन इंद्र, चंद्रमा, श्रीहरि और महालक्ष्मी जी की पूजा का भी विधान है.
क्यों मनाई जाती है कोजागरी पूर्णिमा
कोजागरी पूर्णिमा को कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां लक्ष्मी का जन्म इसी दिन हुआ था. यह पर्व विशेष तौर पर मिथिलांचल, बंगाल या उड़ीसा में मनाया जाता है. इस दिन रात्रि के समय मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. माना जाता है कि इस पूर्णिमा में पूजन करने से लक्ष्मी मां की कृपा सदा घर में बनी रहती है और घर के सदस्यों को धन-दौलत के भंडार का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में मां लक्ष्मी का विशेष पूजन किया जाता है.
विवाहित लोगों के लिए बेहद खास
मिथिलांचल के लोगों के लिए कोजागरी पूर्णिमा का बहुत खास महत्व होता है. इस रात नवविवाहित लोगों के घर में उत्सव का माहौल रहता है. खास तौर से दूल्हे के घर यह दिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी के कछुए, मछ्ली और कौड़ी से दूल्हे का पूजन किया जाता है. इस दिन दुल्हन के मायके की तरफ से दुल्हे और उसके घर के सभी सदस्यों के लिए नया कपड़ा, मिठाई और मखाना आता है. इस पर्व में मखाना का बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन दूल्हे पक्ष के लोग अपनी क्षमता के अनुसार, गांव के लोगों का पान, सुपारी और मखाना से स्वागत करते हैं.
इस दिन दुल्हे की पूजा के बाद सगे-संबंधियों और परिचितों के बीच मखाना, पान, बताशे, लड्डू का वितरण किया जाता है. इस अवसर पर दुल्हा एक खास तरह की टोपी पहनता है. इस टोपी को पाग कहते हैं. मिथिला में पाग सम्मान का प्रतीक माना जाता है. घर के बड़े- बुजुर्ग इस दिन दुल्हे को दही लगाकर दुर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं. लोग मखाना,पैसे और बताशे लुटाकर इस उत्सव का आनंद उठाते हैं.
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