Lord Shiva Family: शिव परिवार एक आदर्श परिवार माना जाता है. ऐसा अनोखा परिवार और किसी का नहीं हो सकता. शिवोपासना अंक अनुसार, सम्पूर्ण ऐश्वर्यो की स्वामिनी साक्षात अन्नपूर्णा भवानी उनकी संगिनी हैं. बाघ या हाथी की छाल पहन बर्फीले पहाड़ों पर घूमते हैं भगवान शिव. बूढ़े बैल की सवारी और सांप और असुरों के मुंड से सर्वथा सजे हुए रहते हैं.
परिवार का वर्णन : –
"कोठ मुख हीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू ।। बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्ट पुष्ट कोड अति तनु खीना ॥" रामचरितमानस बालकाण्ड 92- 94
ऐसी अनोखी बारात लेकर भोला भंडारी ब्याह रचाने गए थे जिसमे उनके अनोखे गण जिनके कई के अनेक सिर तो अनेक हाथ या बिना हाथ के थे कुछ आंखवाले या बिना आंखवाले.
पुत्र के रूप में देवताओं की सेना के कर्ता धर्ता कार्तिकेय और प्रथम पूज्य गणेश को बनाया. अधिष्ठात्री देवी का पद अपनी पत्नी पार्वती को दिया और स्वयं देवाधिदेव महादेव कहलाएं. ऋद्धि-सिद्धि उनकी पुत्रवधू थीं और निवास था हिमालय का ऊंचा शिखर. कविकुलगुरु कालिदास ने कहा है-
"कम्पेन मूर्ध्वः शतपत्रयोनिं
वाचा हरिं वृत्रहणं स्मितेन । देवानवलोकनेन अन्यांश्च
सम्भावयामास त्रिशूलपाणिः ॥
अर्थ – शिव जी की बरात में सम्मिलित होने के लिए आने वाले देवताओं का उन्होंने सत्कार किया है. ब्रह्मा जी आए तो सिर्फ सिर हिला दिया. विष्णु भगवान आए तो बोले 'आइये बैठिये, कुशल तो हैं’.लेकिन न खड़े होकर, न चार कदम बढ़कर स्वागत करने की बात ही की. देवराज इन्द्र आए तो सिर्फ उन्हें देखकर मुस्कुरा दिया. इतने भर से ही उनका स्वागत कर दिया. न बोलने की जरूरत, न सिर हिलाने का प्रयत्न किया. इन्द्र की तरफ देखकर थोड़ा मुसकुरा दिया. दूसरे देवता आये तो उनकी तरफ सिर्फ नजर घुमा दी.
कवियों ने अपनी बड़ी-बड़ी कल्पना की है. मध्यकालीन कवि पद्माकर जी का तो कहना है कि यह केवल गंगा की कृपा है.
"लोचन असम अंग भसम चिता को लाय तीनों लोक-नायक सो कैसे कै ठहरतो । कहें पदमाकर बिलोकि इमि ढंग जाके बेदहू पुरान गान कैसे अनुसरतो।। बाँधे जटा-जूट बैठे परबत कूट माहिं महाकालकूट कहो कैसे कै ठहरतो।"
परंतु अधिकांश लोगों की यह राय है कि यह सब अन्नपूर्णा भवानी की कृपा का फल है-
"स्वयं पञ्चमुखः पुत्रौ गजाननषडाननौ । दिगम्बरः कथं जीवेदन्नपूर्णा न चेद् गृहे ॥" (उनके स्वयं पांच मुख और दो पुत्र गजानन और छह मुख थे. यदि उसके घर में भोजन नहीं भरेगा तो दिगंबर कैसे जीवित रह सकता है?) सच में अगर अन्नप्राशन के रूप में पार्वती न होती तो घर कैसे चलता.
शंकराचार्यजी ने भी यही कहा है. देखिए -
"वृषो वृद्धो यानं विषमशनमाशानिवसनं श्मशानं क्रीडाभूर्भुजगनिवहो भूषणनिधिः। समग्रा सामग्री जगति विदितैव स्मररिपो- यदेतस्यैश्वर्यं तव जननि सौभाग्यमहिमा"
अर्थ– सवारी के लिए बुड्डा बैल. खाने के लिए जहर. रहने के लिये सूनी दिशाएं. खेलने के लिए शमशान और आभूषणों के लिये सांप. भला इस सामग्री वाले का यह प्रबल ऐश्वर्य क्या भगवती जगदम्बिका के अतिरिक्त और किसी कारणवश हो सकता है.
ऐसी स्थिति में पार्वतीजी का यह कहना उचित ही है कि-
"नहि अंबर अंग न संग सखा बहु भूतन के डरसों डरतो। डरतो पुनि साँपन की सुसकारन भाँग बटोरत ही मरतो ।। मरतो जिहि जानि न जन्म-कथा नर बाहन सों खर ना चरतो । हँसि पारबती कहैं शंकरसों हम ना बरती तुम्हें को बरतो।।" (पद्माकर)
स्वामी अंजनी नंदन दास अनुसार, पार्वती जी मुश्किल से ही इस परिवार को संभालती हैं. क्योंकि यह परिवार कोई साधारण परिवार नहीं हैं. वहां तो यह शिकायत लगी ही रहती है कि कभी गणेश जी कार्तिकेय के खिलाफ शिकायत करते हुए कहते है कि इन्होंने अपने हाथ से मेरे कान उमेठ दिए, कभी कार्तिकेय जी गणेश जी के खिलाफ यह दावा करते हैं कि इन्होंने अपनी सूंड़ से मेरी आंखें नोच डालीं (हे हेरम्ब किमम्ब रोदिषि कथं कर्णौ लुठत्यग्निभूः। कि ते स्कन्द विचेष्टितं मम पुरा संख्या कृता चक्षुषाम्॥).
जहां उन व्यक्तियों के वाहन रहते हैं, एक विचित्र स्थान बना रहता है. असल में पार्वती जी को सारी गृहस्थी चलानी है. जिस समय गजानन मोदकों के लिए मचलते हैं, उस समय साक्षात अन्नपूर्णा के सामने भी संकट आ उपस्थित होता है. परंतु हिमवान की एकमात्र कन्या होने के कारण पार्वती जी उन साधनों को जानती हैं जिनके द्वारा वे इस विचित्र परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि दे सकें.
आस-पास केवल बर्फ-ही-बर्फ है, जहां मांगने योग्य कुछ न हो. यहां तो ठंडी बर्फ के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं, यहां धन जैसी वस्तु का आभाव हैं. शेर, बैल, चूहा, मोर, गया यह सब पशु एक साथ महा-कैलाश में वास करतें और वो भी शांतिपूर्वक.
शिव परिवार विचित्र होते हुए भी अनोखा है. ऐसे अदभुत परिवार का बार बार वंदन
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