भगवान शिव के मस्तक पर क्यों विराजते हैं चंद्रमा? जानें क्या है इसका रहस्य
Shiva Purana: भगवान शिव को पंचदेवों में एक माना गया है. शंकर जी की पूजा विधि बहुत सरल है. भोलेबाबा भक्तों से जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. शंकर जी के मस्तक पर चंद्रमा विराजते हैं. जानते इससे जुड़ी कथा.
Shiva Purana: भोलेनाथ को देवों के देव महादेव कहा जाता है. इनकी कृपा से व्यक्ति को जीवन में कोई कष्ट नहीं होता है. सभी देवी-देवताओं में शंकर भगवान को बहुत भोला माना जाता है जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है. शंकर भगवान के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा विराजमान है. शिव पुराण में बताया गया है कि आखिर शंकर भगवान के मस्तक पर चंद्र देवता क्यों विराजते हैं.
भगवान शिव के विराजते हैं चंद्रमा
भगवान शिव के शीश पर चंद्र धारण करने को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं. शिव पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब विष निकला तो सृष्टि की रक्षा हो इसका पान स्वयं शिव ने किया. यह विष उनके कंठ में जमा हो गया थे जिसकी वजह से वो नीलकंठ कहलाए. कथा के अनुसार विषपान के प्रभाव से शंकर जी का शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था.
तब चंद्र सहित अन्य देवताओं ने प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे. श्वेत चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है जो पूरी सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं. देवताओं के आग्रह पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया.
एक अन्य कथा के अनुसार, चंद्रमा की पत्नी 27 नक्षत्र कन्याएं हैं. इनमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं. इससे दुखी चंद्रमा की बाकी पत्नियों ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी. तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया. इसकी वजह से चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं. चंद्रमा को बचाने के लिए नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा.
चंद्रमा ने अपनी भक्ति से शिवजी को प्रसन्न जल्द प्रसन्न कर लिया. शिव की कृपा से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली. तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया.
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