Mahabharat Mythological Katha Hanuman ji, Arjuna and Shri Krishna: महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर हनुमान जी ध्वज लेकर बैठे थे, यह तो आपको पता ही होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामजी के लिए कमान संभालने वाले हनुमान जी महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ पर कैसे विराजमान हुए? जानते हैं इसके पीछे की कथा के बारे में.
अर्जुन के रथ पर कैसे विराजमान हुए हनुमान जी
त्रेतायुग से ही रामजी का नाम लेकर हनुमान चिरंजीवी रहे और ऐसे में एक दिन रामेश्वरम के पास उनकी भेंट अर्जुन से हो गयी. अर्जुन को अपने धनुर्धारी होने पर बड़ा घमंड था. हनुमान से मिलने के बाद उन्होंने कहा कि प्रभु आपने त्रेतायुग में अपनी सेना के साथ मिलकर ये पत्थर का जो सेतु बनाया, अगर मैं होता तो अकेले ही अपने बाणों से ही ऐसा सेतु बनाता कि बिना टूटे उस सेतु से सभी बहुत आराम से उसे पार कर लेते. ऐसे में श्रीराम ने क्यों नहीं ऐसा सेतु स्वयं बना लिया?
जब अर्जुन में झलका अहंकार
हनुमान जी ने अर्जुन की पूरी बात सुनी और विनम्रतापूर्वक कहा कि, जिस स्थान आप अभी खड़े हैं, यहां बाणों से सेतु बनाना असंभव है. ऐसा सेतु मेरी सेना का वजन क्या, मेरा ही वजन नहीं संभाल पाती. इस पर अर्जुन ने हनुमान जी को चुनौती दी कि अगर उन्होंने बाणों से ऐसा सेतु बना दिया, जिसमें हनुमान जी तीन कदम चल पाए तो फिर हनुमान जी को अग्नि में प्रवेश करना होगा और अगर हनुमान जी के चलने से पुल टूट गया तो फिर अर्जुन अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे. हनुमान जी ने अर्जुन की चुनौती स्वीकार कर ली. इसके बाद अर्जुन ने उनके सामने ही एक सरोवर में बाणों का सेतु बनाकर तैयार कर दिया.
हनुमान जी के वजन से हिला सेतु
हनुमान जी प्रभु राम का नाम लेकर उस सेतु पर चल पड़े. लेकिन हनुमना जी का पहला कदम पड़ते ही वो सेतु डगमगाने लगा, दूसरे कदम में उस सेतु के टूटने की आवाजें आने लगी और तीसरे कदम पर तो उस सरोवर का पानी रक्त जैसा लाल हो गया. लेकिन अर्जुन के कहेनुसार हनुमान जी सेतु पर तीन कदम चल चुके थे और अब उनके अग्नि में प्रवेश करने का समय आ गया था. जैसे ही वो अग्नि में प्रवेश करने वाले थे वैसे ही वहां पर श्रीकृष्ण अवतरित हुए.
उन्होंने हनुमान जी को रोका और उन्हें समझाया कि दरअसल ये सेतु तो पहले कदम में ही टूट जाता. लेकिन मैं कछुए का रूप लेकर इस सेतु के नीचे लेटा हुआ था. दो कदमों के बाद तो ये सेतु टूट गया था और हनुमान जी का तीसरा कदम असल में श्री कृष्ण के ऊपर पड़ा था. इसलिए सरोवर का पानी उनके रक्त से लाल हो गया. यह जानकर हनुमान जी को बहुत ही ग्लानि महसूस हुई और उन्होंने क्षमा मांगते हुए उनसे अपने पाप का प्रायश्चित करने का उपाय मांगा. अर्जुन भी ये सब जानकर निराश हो गए और दोनों ने भगवान से क्षमा मांगी.
हनुमान जी ने यूं पकड़ी अर्जुन के रथ की ध्वजा
तब श्री कृष्ण ने दोनों को समझाया कि जो भी हुआ उनकी इच्छा से हुआ. ऐसे में मेरी यही इच्छा है कि आप कुरुक्षेत्र के युद्ध में हमारी सहायता करें. हनुमान जी ने उनसे पूछा कि वो कैसे अर्जुन की सहायता कर सकते हैं. तब उन्होंने हनुमान जी को अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा में विराजमान होने को कहा. ऐसा करने से विरोधियों के बाण रथ पर लगे भी तो वो हनुमान के वजन के कारण पीछे नहीं जाएगा और अर्जुन को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा. हनुमान जी ने श्री कृष्ण की बात मान ली और इस तरह से महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर हनुमान जी ध्वज के साथ विराजमान हुए.
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