Vidur Niti: महात्मा विदुर (Mahatma Vidur) जी ने मानव के मन की अभिलाषा और उनसे होने वाले हानि लाभ के बारे में बताते हुए कहा है कि मनुष्य का मन संयत नहीं रहता है. वह हमेशा दूसरों के प्रति अपने अच्छे बुरे विचारों को प्रकट करता रहता है. विदुर जी (Vidur Ji) कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने हितैषियों का त्याग कर देता है और शत्रुओं के साथ हाथ मिला लेता है. जीवन में उसका पतन निश्चित हो जाता है. ऐसा मनुष्य अधिक धन कमाने की लालच में अपने से अधिक धनवान व्यक्ति से मित्रता करने की भूल कर बैठ करता है.
ऐसा व्यक्ति होता है महामूर्ख
विदुर नीति (Vidur Niti) के आठवें अध्याय में श्लोक में लिखा है कि-
श्लोक: अश्रुतश्च समुत्रद्धो दरिद्रश्य महामना: I अर्थाश्चाकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधै: II
इस श्लोक में कहा गया है कि बिना पढ़े लिखे ही स्वयं को ज्ञानी समझकर अहंकार करने वाला व्यक्ति महामूर्ख होता है क्योंकि उसमें सोचने समझने की क्षमता का अभाव होता है. लोगों के प्रति कैसा व्यवहार किया जाए, इसका भी उसे ज्ञान नहीं होता है. जिस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होती है. जो दरिद्रता से गुजर रहा होता है. वह व्यक्ति अगर बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाने लगे और उसे क्रियांवित करने की बात सोचे तो उससे बड़ा मूर्ख इस दुनिया में कोई नहीं है क्योंकि योजनाओं को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है. केवल गाल बजाने से योजनाएं धरातल पर नहीं आ जाती हैं. विदुर नीति (Vidur Niti) के इस श्लोक में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति आलसी होता है. वह बैठे बिठाए धन कमाने की चाहत रखता है. ऐसा व्यक्ति महामूर्ख होता है क्योंकि बिना परिश्रम से प्राप्त धन सदुपयोग में नहीं लग सकता है.
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