गुरु के ध्यान मंत्र से पाएं ज्ञान और सम्मान, छात्रों की बढ़ेगी एकाग्रता की क्षमता
गुरु का ध्यान मंत्र हमें धैर्य और अनुशासन के साथ समस्त सिद्धांतों को समझने की सामर्थ्य देता है.
स्वर्ग में देवताओं के सलाहकार गुरु-बृहस्पति ज्ञान के देव हैं. वैश्विक और संस्थागत ज्ञान के प्रतीक हैं. शिक्षा के क्षेत्र हो या अन्य प्रतिष्ठित पद प्रतिष्ठान गुरु की कृपा के बिना सफलता सुनिश्चित होना अत्यंत कठिन होता है.
गुरु को सबसे भारी ग्रह माना जाता है यानी ज्ञान और विज्ञान से संपन्न व्यक्ति में व्यवहार की गुरुता इतनी अधिक होती है कि दुनिया उसके समक्ष हल्की नजर आती है. गुरु की उपलब्धियां ऐसी हैं कि दिन रात बढ़ती हैं. चाहे जितना इन्हें बांटा जाए कभी कम नहीं होती, उलटा समृद्ध होती हैं.
गुरु का ध्यान मंत्र सूर्याेदय और संध्या बेला में मननीय है. एकांत में सहज आसन लगाकर इस मंत्र का शांत भाव से पाठ करें. धीरे-धीरे ध्यान बढ़ता जाएगा और मंत्र आत्मसात हो जाएगा. नियमित अभ्यास से साधक गुरु के गुणों में वृद्धि अनुभव करने लग जाता है.
गुरु का ध्यान मंत्र- देवानां गुरु तद्वत् पीतवर्णः चतुर्भुजः। दण्डी च वरदः कार्यः साक्षसूत्रकमंडलु।।
विद्यार्थियों को ध्यान मंत्र के साथ नियमित अभ्यास करने से विषयों को समझने और एकाग्रता की क्षमता बढ़ती है. संस्थागत सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है. व्यवहारिक ज्ञान की प्रवृत्ति को बल मिलता है. सकारात्मकता और आदरभाव बढ़ता है. वरिष्ठों के प्रति सेवाभावना ज्ञान और अध्ययन के साथ उपयोगी अनुभव होती है. विद्यार्थी चहुंमुखी प्रतिभा के प्रदर्शन से सभी को प्रभावित करते हैं.