Chandrama Ki Katha: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. कुंडली में चंद्रमा की शुभ स्थिति से जीवन में सुख-शांति आती है. चंद्रमा को अन्य देवताओं के समान ही पूजनीय माना गया है. ज्योतिष में तो चंद्रमा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. दिन-रात, महीना-साल, प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पूर्णिमा सब तिथियां चंद्रमा पर निर्भर करती हैं. अपनी ललित कलाओं से चंद्रमा हर किसी का मन मोह लेता है.


सौर-मंडल का स्वामी सूर्य जहां हमेशा गोल नजर आता है, वही चंद्रमा दिन-प्रतिदिन अपना आकर बदलता नजर आता है. चंद्रमा का यह घटना-बढ़ना हमेशा एक क्रम में चलता रहता है. आइए जानते हैं चंद्रमा की कलाओं और इसके घटने-बढ़ने के रहस्य के बारे में.


चंद्रमा के घटने-बढ़ने का कारण



जब चन्द्रमा पूर्ण रूप से ओझल हो जाता है तब अमावस्या आती है और जब चन्द्रमा अपने सम्पूर्ण स्वरुप में आता है तब पूर्णिमा पड़ती है. पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष रहता है, जो 15-15 दिनों का होता है. एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा के बीच लगभग साढ़े उनतीस दिनों का अंतर आता है. चन्द्रमा की आकृति में आने वाले इस परिवर्तन को उसकी ‘कला’ कहते हैं और इसी के आधार पर हमारे पंचांग में चंद्रमास की तिथियां तय होती हैं.


चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है जबकि पृथ्वी सूर्य की. इसी क्रम में सूर्य का कुछ प्रकाश पृथ्वी द्वारा अवरूद्ध होने के कारण चंद्रमा पर छाया बनता है जो रोज क्रम से घटता और बढ़ता रहता है. सूरज का जो प्रकाश अवरूद्ध नहीं होता वह चंद्रमा से परावर्तित होकर चमकदार दिखता है. इसी छाया और उजले भाग को चंद्रमा की कला कहते हैं. यह सूरज, पृथ्वी और चंद्रमा की परिक्रमण गति के कारण से होता है.


चंद्रमा की 16 कलाएं 


चंद्रमा की 16 कलाएं अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वस्थता), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख). चंद्रमा के प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक के सफर को 16 कलाओं से युक्त कहा गया है. 


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