यात्रा में लोग चौघड़िया देखते हैं, राहूकाल का ध्यान रखते हैं, कुछ जन मुहूर्त भी निकलवाते हैं, इन सबका ध्यान रखा जाना फायदेमंद है, लेकिन दैनिक जीवन में इन दो छोटी आदतों से कोई भी यात्रा पर जाने वाला शुभता को बढ़ा सकता है.
पहली महत्वपूर्ण बात है कि यात्रा का आरंभ दांया स्वर चलते समय करें. नाक के दोनों नथुनों में सहज बदलाव के साथ श्वास-प्रश्वास चलता रहता है. बायां स्वर चंद्रमा का स्वर माना जाता है. इसकी गति से व्यक्ति में आराम का भाव बढ़ता. वह विश्राम की मुद्रा में रहना पसंद करता है. ऐसे में यात्रा करना अच्छा नहीं माना जा सकता है. यात्रा के लिए सतर्कता और सक्रियता होना आवश्यक है.
दायां स्वर उूर्जा और चेतना बढ़ाता है. महत्वपूर्ण बौद्धिक कार्याें में इसी स्वर से लाभ होता है. यात्रा में दायां स्वर व्यक्ति की सभी इंद्रियों में जाग्रती लाता है. पूर्ण जाग्रत अवस्था में यात्रा का आरंभ श्रेयष्कर होता है. यदि व्यक्ति के पास समय है और उसका बायां स्वर चल रहा है तो वह थोड़ा रुक जाए. दायां स्वर आने पर यात्रा आरंभ करे. समय के अभाव में वह दाहिने हाथ से बाएं नथुने को बंद कर यात्रा प्रारंभ कर सकता है. अक्सर पानी पीने के थोड़ी देर बाद दायां स्वर खुल जाता है। संभव हो तो पानी पीकर और थोड़ा रुककर घर से निकलें.
दूसरी महत्वपूर्ण क्रिया है. बाहर पहला कदम दाहिना रखें. इससे आपकी यात्रा को सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होगा. सेना-पुलिस एवं अन्य सामूहिक कदमताल में भी आपने पहले दाएं फिर बाएं कदम बढ़ाने की बात सुनी ही होगी. दाएं कदम को पहले बाहर रखने से सूर्य और मंगल की सकारात्मकता प्राप्त होती है. दोनों ग्रह उत्साह, बल और उूर्जा के कारक हैं. बाएं कदम को आगे बढ़ाकर यात्रा आरंभ न करें. घर में पुनः प्रवेश के समय बायां पैर आगे रखें. इससे घर में सुख शांति और सौख्य का संचार बढ़ता है.