Nagdah Yagya, Rishi Mantra: कल 2 अगस्त को नाग पंचमी मनाई जायेगी. नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है. महाभारत के अनुसार, राजा जनमेजय ने अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए नागदाह यज्ञ (Nagdah Yagya) करवाया था, जिसमें संसार के बड़े-बड़े सापों की आहुति दे दी गई थी. जिसकी वजह सांप जाति का समूल नष्ट होने वाला था. परंतु आस्तिक ऋषि के तप से यह यज्ञ खत्म हुई थी. आइये जानें कैसे खत्म हुई नागदाह यज्ञ और किस ऋषि के नाम लेते ही सांप भाग जाते हैं?   


किसने रुकवाया नागदाह यज्ञ


महाभारत के अनुसार राजा जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई. इसके प्रतिशोध में राजा जनमेजय जब नागदाह यज्ञ करवा रहे थे. तो उस समय मृत्यु के भय से तक्षक नाग देवराज इंद्र के यहां जाकर छिप गया था. इस यज्ञ के बारे में जब आस्तिक ऋषि को पता चला तो वे यज्ञ देवता की स्तुति करने लगे. यह देख राजा जनमेजय ने आस्तिक मुनि को वरदान देने के लिए बुलाया. तब आस्तिक मुनि ने नागदाह यज्ञ रोकने का आग्रह किया. पहले तो राजा जनमेजय ने इंकार किया परंतु बाद में ऋषियों द्वारा समझाने पर वे मान गए. सर्प यज्ञ रुकवाने के बाद जब आस्तिक मुनि अपने मामा और नागों के राजा वासुकि के पास गए तो वहां पर उपस्थिति सभी सर्प आस्तिक मुनि का गुणगान कर रहे थे. तब वासुकि ने प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि से वरदान मांगने के लिए कहा. तब आस्तिक मुनि ने कहा कि जो भी मेरा नाम ले, उसे किसी तरह का कोई सर्प भय न रहे. तब वासुकि इन्हें यह वरदान दे दिया.


आस्तिक मुनि की मंत्र


सर्पापसर्प भद्रं ते गच्छ सर्प महाविष।  जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर।।


आस्तीकस्य वचः श्रुत्वा यः सर्पो न निवर्तते।  शतधा भिद्यते मूर्ध्नि शिंशवृक्षफलं यथा।।


 



 



 


 


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