Numerology: हिंदू धर्म में चार अंक का है बहुत खास महत्व, जानिए आखिर कैसे
Numerology: हिंदू धर्म में वेद-पुराण, प्रमुख देवी-देवाता, धर्म शास्त्र आदि से जुड़ी कई चीजें संख्याओं (Number) पर आधारित है. इसी तरह से हिंदू धर्म में 4 अंक को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है.
Numerology: सनातन धर्म (Sanatan Dharma) से संबंधित महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख अंकों के माध्यम से किया गया है. इसी तरह से हिंदू धर्म की विविधता और गहराई का एक जरूरी पहलू चार अंक के महत्व पर आधारित है. 4 अंक को हिंदू धर्म का प्रमुख अंक माना जाता है. क्योंकि यह सिद्धांत, संस्कृति और आध्यात्मिकता से जुड़े होने के साथ ही जीवन के विभिन्न पहलूओं में आता है.
आइये प्रामाणिक आधार के साथ जानेंगे आखिर हिंदू धर्म में क्यों है 4 अंक का इतना महत्व (Importance of Number 4 in Hinduism)
चार युग (Four Yugas): हिंदू धर्म में संसार के काल को चार युगों में बांटा गया है. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग (वर्तमान युग).
चार वेद (Four Vedas): हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ है वेद जोकि चार भागों में विभाजित है:-
- ऋग्वेद (Rigveda): इसमें मंत्रों का संग्रह और देवताओं की स्तुति है.
- यजुर्वेद (Yajurveda): यज्ञ और अनुष्ठानों में प्रयोग होने वाले मंत्रों का संग्रह है.
- सामवेद (Samaveda): संगीत और गायन के रूप में देवताओं की स्तुति के मंत्र समाहित हैं
- अथर्ववेद (Atharvaveda): चिकित्सा, जादू-टोना के साथ ही घरेलू अनुष्ठानों के मंत्रों का संग्रह है.
चार नीति (Four Nitis): हिंदू धर्म में चार नीतियों का उल्लेख है. इन नीतियों के जरिए हर समस्या का समाधान संभव है जोकि इस प्रकार है-
- साम (Sam): संवाद या फिर समझौते के जरिए सुलह करना.
- दाम (Dam): लालच या रिश्वत देकर मनाना.
- दंड (Danda): दंड या शक्ति का प्रयोग करना.
- भेद (Bhed): विभाजन या चालाकी द्वारा समस्या का समाधना करना.
चार पुरुषार्थ (Four Aims of Life): हिंदू धर्म के ये चार पुरुषार्थ मानव जीवन का मार्गदर्शन करते हैं जोकि इस प्रकार है-
- धर्म (नैतिकता)
- अर्थ (समृद्धि)
- कर्म (काम)
- मोक्ष (मुक्ति)
चार प्रकार के भोजन (Four Types of Food): आहार के रूप में ‘खाद्य’, पीने के रूप में ‘पेय’,खाद्य-आहार के रूप में ‘लेहम’ और पाचन के रूप में ‘चोषण’.
चार आश्रम (Four Stages of Life): ये चार आश्रम जीवन के चार भाग है जोकि इस प्रकार हैं-
- ब्रह्मचर्य: शिक्षा और स्वयं के नियमों के प्रति ध्यान केंद्रित करना.
- गृहस्थ: परिवार, दांपत्य जीवन, करियर, और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना.
- वानप्रस्थ: संतान की उत्पत्ति और संतान के धर्म की ओर सामाजिक कर्तव्यों से आत्मनिवृत्ति का चरण.
- संन्यास: पूरी तरह से आध्यात्मिक कामों और जगत के विषयों से मोक्ष ले लेना.
चार वाणी (Four Speeches)
- ओंकार: ओंकार आध्यात्मिक ध्वनि है, जोकि आदि और सर्वशक्तिमान ब्रह्म का प्रतीक है.
- आकार: आकार की ध्वनि, सबकुछ की उत्पत्ति का है. इसे ब्रह्म का ही रूप कहा जाता है.
- उकार: उ वाणी धन के बारे में बोलने से है. यह ध्वनि धन, समृद्धि, सम्पत्ति और सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का प्रतीक है.
- म्कार: म्कार ज्ञान की ध्वनि है, जोकि ज्ञान, विद्या, और कला की देवी देवी सरस्वती का प्रतीक मानी जाती है.
चार धाम (Char Dham): चार दिशाओं में स्थित भगवान विष्णु से संबंधित चार तीर्थ स्थल को हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है, जोकि इस प्रकार है-
- उत्तराखंड में बद्रीनाथ- उत्तर दिशा
- तमिलनाडु में रामेश्वरम- दक्षिण दिशा
- ओडिशा में जगन्नाथ पुरी- पूर्व में
- गुजरात में द्वारका- पश्चिम में.
चार प्राणी (Four Living Beings)
- जलचर: जलचर यानी जल- प्राणियां जोकि जल में रहती हैं. जैसे- मछलियां, केकड़े और जल में वाले अन्य कीटें.
- नभचर: नभ-प्राणी का अर्थ है जो प्राणियां आकाश में उड़ती है. जैसे- इसमें पक्षी, हवा में उड़ने वाले कीड़े.
- थलचर: थल प्राणी पृथ्वी की ऊपरी परत में पाए जाते हैं. जैसे घास के कीट, चींटियाँ, कीटाणु आदि .
- उभचर: उभचर या ऊर्ध्व-प्राणी पृथ्वी की भूमि पर रहते है. जैसे मनुष्य,पशु, पक्षी, कीट आदि.
चार बेला (Four Times of Day)
- प्रातःकाल (Morning)- सूर्योदय से पहले और सूर्योदय तक.
- दोपहर (Dopahar)- दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक.
- सायंकाल (Evening) सूर्यास्त से पहले और सूर्यास्त तक.
- रात्रि (Night)- सूर्यास्त के बाद से लेकर मध्यरात्रि तक.
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