Moon Story: चंद्रमा नवग्रहों में से एक माना जाता है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन, मां और सुंदरता का कारक माना गया है. कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ हो तो जीवन में प्रसन्नता और सुख आता है. इसकी कृपा से माता का स्वास्थ्य बेहतर रहता है और अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है. वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है. 


ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को विशेष स्थान प्राप्त है. इसे ग्रह और देव दोनों माना गया है. चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं इस प्रचलित कथा के बारे में.


ऐसे हुई चंद्रमा की उत्पत्ति


ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को सोम कहा गया है, जो मन का कारक है. अग्नि ,इंद्र ,सूर्य आदि देवों के समान ही सोम की स्तुति के मन्त्रों की रचना भी ऋषियों द्वारा की गई है.  चंद्रमा के बारे में मत्स्य, पद्म, अग्नि और स्कन्द पुराण में विस्तार से बताया गया है. 



पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी. महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप आरम्भ किया. ताप काल में एक दिन महर्षि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत प्रकाशमय थीं. दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गया. 


हालांकि दिशाएं उस प्रकाशमान गर्भ को धारण न रख सकीं और त्याग दिया. उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए. देवताओं,ऋषियों और गन्धर्वों आदि ने उनकी स्तुति की. उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुई. ब्रह्मा जी ने चन्द्र को नक्षत्र,वनस्पतियों,ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया.


वहीं स्कन्द पुराण के अनुसार, जब देवों और दैत्यों ने क्षीर सागर का मंथन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे. चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक है जिसे भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया. हालांकि ग्रह के रूप में चन्द्र की उपस्थिति मंथन से पूर्व भी सिद्ध होती है.


मत्स्य पुराण में लिखा है कि जब सृष्टि के रचनाकार ब्रह्माजी ने मानस पुत्रों को प्रकट किया तो उनमें से एक पुत्र ब्रह्म ऋषि ‘अत्रि’ हुए. उनका विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसुइया से हुआ था. अनुसुइया पतिव्रता स्त्री थीं. जब त्रिदेवों ने अनुसुइया की परीक्षा ली तो उस समय दुर्वासा ऋषि, दत्तात्रेय व सोम का जन्म हुआ, वही सोम चंद्रमा हैं. 


27 कन्याओं से हुआ चंद्रमा का विवाह


पुराणों के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था. ये कन्याएं रोहिणी, रेवती, कृतिका, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, सुन्निता, पुष्य अश्व्लेशा, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, अषाढ़, अभिजीत, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, अश्वयुज और भरणी हैं.


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