Navratri 2022 : नवरात्रि शुरू हो चुके हैं. 4 अप्रैल 2022 को चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है. नवरात्रि का पर्व भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी मनाया जाता है. यहां पर एक ऐसा मंदिर है जहां पर नवरात्रि के दिनों में पूजा के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ये मंदिर कौन सा है और क्या है इसका इतिहास आइए जानते हैं. 


पाकिस्तान में माता का सिद्ध पीठ
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में माता का एक सिद्ध पीठ है. इस सिद्ध पीठ को 'हिंगलाज' माता कहा जाता है. हिंगलाज माता का मंदिर 51 शक्तिपीठ में से एक है. इस मंदिर में  नवरात्रि का पर्व बहुत ही भक्ति भाव से मनाया जाता है. माता के दर्शन के लिए यहां
बड़ी संख्या में श्रृद्धालु आते हैं. 


भगवान श्रीराम ने यहां आकर किए थे माता के दर्शन
पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम रावध का वध करने के बाद हिंगलाज माता के दर्शन के लिए आए थे. नवरात्रि के पर्व पर हिंगलाज माता के दरबार में बड़ी संख्या में हिंदू, सिंधी और मुस्लमान श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. हिंगलाज माता का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. 


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पाकिस्तान में हिंगोल नदी पर बना है ये मंदिर
माता का यह मंदिर बलूचिस्तान के हिंगोल नदी के किनारे स्थित है. जो खेरथार पर्वतमाला की श्रृंखला में बना हुआ है. यहां माता एक गुफा में विराजमान हैं. जो एक शिला के रुप में विराजमान हैं.


हिंगलाज माता की कथा
हिंगलाज माता की कथा हिंगलाज माता का नाम हिंगलाज कैसे पड़ा इसके पीछे एक रोचक कथा है. मान्यता है कि यहां पर हिंगोल नाम का एक कबिला राज करता था, इसका राजा हंगोल था. हंगोल बहादुर राजा था. लेकिन उसके दरबारी उसे पसंद नहीं करते थे. राजा के वजीर ने राजा को लत लगा दी और भी कई तरह के व्यसन उसे लगा दिए. जिससे कबिले के लोग परेशान हो गए तब उन्होंने देवी से राजा को सुधारने की प्रर्थना की. माता ने उनकी प्रार्थना को सुन लिया. इस तरह से कबिले की लाज रह गई. तभी से हिंगलाज माता कहलाने लगीं.


माता तक पहुंचाने का रास्ता है बहुत कठिन
मुसलमान मानते हैं नानी का मंदिर यहां पहुंचने का रास्ता बेहद कठिन हैं पथरीले और कच्चे रास्तों से होकर माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है.लेकिन कहा जाता है कि जो भी माता के दरबार में जाता है वह खाली हाथ नहीं लौटता है. मुसलमान भी माता पर आस्था रखते हैं अपनी इस धार्मिक यात्रा को वे नानी का हज और नानी का मंदिर कहते हैं.


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