कहते हैं कि हथेली की रेखाओं में हमारा भविष्य छुपा होता है. हथेलियों की रेखाओं को पढ़कर हम अपनी क्षमताओं, कमजोरियों के बारे में लगा सकते हैं. जो हस्तरेखा ज्ञान में विश्वास रखते हैं वह अक्सर किसी ज्योतिषी के पास अपना हाथ दिखाने जाते हैं.


आज हम आपको हस्तरेखा से जुड़े सामान्य नियम बता रहे हैं जिनकी जानकारी किसी को भी होना जरूरी है तभी वह हस्तरेखा ज्ञान का अधिक से अधिक फायदा उठा पाएगा.




  • हाथ दिखाने का सबसे अच्छा समय सुबह का है.

  • ग्रहण के समय, श्मशान में, मार्ग में चलते समय तथा भीड़-भाड़ में हाथ नहीं देखना या दिखाना चाहिए. जल्दबाजी में हाथ देखना भी सही नहीं होता.

  • पुरुषों का दायां तथा स्त्रियों का बायां हाथ देखा जाता है.

  • हस्त रेखा देखने की शुरुआत करने से पहले अंगूठा देखें, इसके बाद हथेली की कोमलता या कठोरता को देखें. हाथों का अध्ययन आप जितनी गहराई और ध्यान से करेंगे, आपका भविष्यफल उतना ही सटीक और सही होगा.

  • अस्पष्ट और क्षीण रेखाएं बाधाओं की पूर्व सूचना देती हैं. ऐसी रेखाएं मन के अस्थिर होने तथा परेशानी का संकेत देती हैं.

  • अगर कोई रेखा आखिरी सिरे पर जाकर कई भागों में बंट जाए तो उसका फल भी बदल जाता है. ऐसी रेखा को प्रतिकूल फलदायी समझा जाता है. टूटी हुई रेखाएं अशुभ फल प्रदान करती हैं.


हथेली पर बनने वाली प्रमुख रेखाएं




  • हृदय रेखा: यह हथेली के ऊपरी हिस्से और उंगलियों के नीचे होती है. यह छोटी उंगली से शुरू होती है और तर्जनी उंगली की तरफ बढ़ती है.

  • विद्या रेखा: इसकी शुरुआत अनामिका और मध्यमा उंगली के बीच से होती है. यह रेखा अनामिका उंगली की तरफ झुकी होती है.

  • मस्तिष्क रेखा: यह तर्जनी उंगली के नीचे से शुरू होती है जो बाहर के किनारे की ओर बढ़ती जाती है.

  • जीवन रेखा: यह अंगूठे और तर्जनी के बीच से निकलती है और कलाई की तरफ यानि मणिबंध तक बढ़ती है.

  • भाग्य रेखा: यह मणिबंध से निकलकर मध्यमा उंगली के पास जाती है. हथेली के नीचे का स्थान को  मणिबंध कहते हैं.

  • विवाह रेखा छोटी उंगली के नीचे वाले हिस्से में होती है.


हथेली में बनने वाले पर्वत
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी हथेली को कई महत्वपूर्ण उभार होते हैं जिन्हें हस्तरेखा विज्ञान में पर्वत कहा जाता है.




  • तर्जनी के नीचे वाले पर्वत गुरू पर्वत कहते हैं.

  • मध्या से नीचे स्थित पर्वत को शनि पर्वत कहते हैं.

  • अनामिका के नीच स्थित पर्वत को सूर्य पर्वत कहते हैं.

  • कनिष्ठा के नीचे वाले पर्वत को बुध पर्वत कहते हैं.

  • अंगूठे के नीचे बने पर्वत को शुक्र पर्वत कहते हैं.


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