Parshuram Jayanti 2023: परशुराम जयंती कब ? इस दिन बन रहे हैं कई शुभ योग, यहां जानें कथा और सही डेट
Parshuram Jayanti 2023 Date: 22 अप्रैल 2023, शनिवार के दिन परशुराम जयंती मनाई जाएगी. इस दिन अक्षय तृतीया भी है. भगवान परशुराम विष्णु भगवान के छठे अवतार थे. जानते हैं भगवान परशुराम की कथा के बारें में.
Parshuram Jayanti 2023 Date: भगवान परशुराम की जयंती 22 अप्रैल 2023, शनिवार के दिन मनाई जाएगी. भगवान परशुराम का जन्म वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था. इस दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है. भगवान परशुराम ने सनातन धर्म को बढ़ाने का काम किया था. परशुराम भगवान को विष्णु जी के छठा अवतार माना जाता है.
भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक, धर्मांध, और आताताई राजाओं का संहार किया था. लेकिन दुष्प्रचार के कारण यह बताया गया कि इन्होंने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था. किसी धर्म जाति वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य ही नहीं बल्कि वे समस्त मानव मात्र के आराध्य हैं. इस दिन विष्णु जी की अराधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. परशुराम भगवान का नाम जब भी आता है तो क्रोध का ज्ञान होता है. अब बताते हैं भगवान परशुराम की जन्म कथा के बारे में.
इस दिन बनने वाले योग (Panchang 22 April 2023 ) |
योग | समय |
आयुष्मान | प्रातः 09 बजकर 24 मिनट तक |
अभिजीत मुहूर्त | प्रातः 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक |
राहुकाल का समय | प्रातः 9 बजकर 04 मिनट से प्रातः 10 बजकर 42 मिनट तक |
भगवान परशुराम के जन्म की कथा (Parshuram Story in Hindi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में माना जाता है. उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान मिला था. उनके पिता ऋषि जमदग्नि थे. ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह किया था. ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए एक महान यज्ञ किया.
इस यज्ञ से प्रसन्न होकर इंद्रदेव ने उन्हें तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया और अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी ने जन्म लिया. ऋषि ने अपने पुत्र का नाम राम रखा था. राम ने शस्त्र का ज्ञान भगवान शिव से प्राप्त किया और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपना फरसा यानि परशु प्रदान किया. इसके बाद वह परशुराम कहलाए. परशुराम को चिरंजीवी कहा जाता है वह आज भी जीवित हैं. उनका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों काल में होता है. श्री कृष्ण को उन्होंने सुदर्शन चक्र उपलब्ध करवाया था और महाभारत काल में भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया था.
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