शनिदेव की सामान्य साढ़े साती से सभी भयभीत रहते हैं. इसका प्रभाव न्याय देने वाला होता है. इसमें कर्म के अनुसार फल मिलता है. इससे लोग कर्मदण्ड समझ कर शनिदेव की साढ़ेसाती के प्रभाव को कष्टकारी मान बैठते हैं. उक्त साढ़ेसाती जैसे ही शनिदेव की कृपा से शुभदा साढ़ेसाती का निर्माण होता है. इसमें शनिदेव जातक की राशि से नौं, दसवें और ग्यारवें भाव अर्थात् भाग्य, कर्म और लाभ भाव में संचरण करते हैं.


इन तीन भावों में ढाई-ढाई वर्ष लगातार भ्रमण करने से शुभदा साढ़ेसाती बनती है. इसमें व्यक्ति भाग्य और लाभ से उम्मीद से ज्यादा लाभान्वित होता है. साधारण प्रयासों से अच्छी सफलता के राह प्रशस्त हो जाती है. महत्वपूर्ण लोगों से भेंट वार्ताएं होती हैं. बड़े महत्व के कार्याें को गति मिलती है. इसमें कर्म से ज्यादा भाग्य का प्रभाव देखने को मिलता है.


इसके बाद जब शनि आगे बढ़ते हैं और बारहवें, पहले और दूसरे भाव में संचरण करते हैं तो यह प्रचलित साढ़ेसाती कहलाती है. इसमें पूर्व में अति उत्साह या अहंकार में किए गए गलत कार्याें के लिए शनिदेव उचित न्याय करते हैं.
इस प्रकार यदि शुभदा साढ़ेसाती में व्यक्ति शुभकार्य करता रहता है तो उसे प्रचलित साढ़ेसाती में न्याय स्वरूप शुभफल ही अधिक प्राप्त होता है.


ध्यातव्य है कि शनि एक राशि में ढाई वर्ष के भ्रमण हिसाब से संपूर्ण राशि चक्र का परिभ्रमण 30 वर्ष में पूरा करते हैं. इसमें क्रमशः शुभदा साढ़ेसाती और प्रचलित सामान्य साढ़ेसाती आती हैं.