आपके आचरण मात्र से भी शांत हो सकते हैं ग्रह
ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए न सिर्फ उपासना व यज्ञ करें, बल्कि दान भी दें. आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से यह संपूर्ण विश्व कर्म प्रधान है. हमारे शास्त्र भी कर्म बंधन की बात करते हैं-
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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,
जो जस करई तो तस फलि चाखा।।
सकल पदारथ हैं जग माहीं,
कर्म हीन नर पावत नाहीं।।
पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता है, रूप बदल जाता है. इसी प्रकार किया गया कर्म भी कभी निष्फल नहीं होता है. हम जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल पाते हैं. अपने पूर्व जन्मों के लिए उपासना, यज्ञ रत्न धारण आदि का विधान है. यदि हम लोग जड़ की अपेक्षा सीधे जीव से संबंध स्थापित करें, तो यह ग्रह अति शीघ्र प्रसन्न हो सकते हैं. वेदों में कहा गया है-मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव, अतिथि देवो भव. हमारे शास्त्रों में सूत्र संकेतों के रूप में हैं जिन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए.
अभिवादन शीलस्य नित्य वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धते, आयुर्विद्या यशो बलम्।।
अर्थात मात्र प्रणाम करने से, सदाचार के पालन से एवं नित्य वृद्धों की सेवा करने से आयु, विद्या, यश व बल की वृद्धि होती है. भगवान श्री गणेश अपने माता-पिता में त्रैलोक समाहित मानकर उनका पूजन और प्रदिक्षणा करने से प्रथम पूजनीय बन गए है. यदि हमें जीवों के प्रति परोपकार की भावना रखें, तो अपनी कुंडली में रुष्ट ग्रहों की रुष्टता को न्यूनतम कर सकते हैं. नौ ग्रह इस चराचर जगत में पदार्थ वनस्पति, तत्व पशु-पक्षी इत्यादि सब में अपना प्रतिनिधित्व समाहित रखते हैं.
इसी तरह ऋषियों ने पारिवारिक सदस्यों और आसपास के लोगों में भी ग्रहों का प्रतिनिधित्व बताया है. माता-पिता दोनों के संयोग से किसी जातक का जन्म होता है. इसलिए सूर्य आत्मा के साथ-साथ पिता का प्रतिनिधित्व करता है और चंद्रमा मन के साथ- साथ माता का. योग शास्त्र में जो स्वर साधना है, उसमें एक स्वर का अधिपति सूर्य और एक का चंद्रमा माना गया है. श्वांस ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य और चंद्र हैं. योग ने इस श्वांस को प्राण कहा है. दाहिने स्वर को सूर्य और बाएं को चंद्रमा कहा है. आजकल ज्योतिष में तरह-तरह के उपाय प्रचलित हैं किंतु व्यक्ति के आचरण संबंधी और जीव के निकट संबंधियों से जो उपाय शास्त्रों में वर्णित हैं, कदाचित वे किन्हीं कारणों से चलन में नहीं रह गए हैं.
यदि कुंडली में सूर्य अशुभ स्थिति में, नीच का हो, पीड़ित हो तो कर्म विपाक सिद्धांत के अनुसार यह माना जाता है कि पिछले जन्म में पिता रुष्ट रहा होगा, तभी तो इस जन्म में जातक सूर्य की अशुभ स्थिति में जन्म पाता हैं. सूर्य के इस अनिष्ट परिहार के लिए इस जन्म के जातक को अपने पिता की सेवा करनी चाहिए. प्रातः उनके चरण स्पर्श करें, तो निश्चय ही सूर्य अपना अशुभ फल देना कम करता जाएगा.
यदि सूर्य ग्रह रुष्ट है तो पिता को प्रसन्न करें चंद्र है तो माता को प्रसन्न करें, मंगल है तो भाई बहन को प्रसन्न करें, बुध है तो मामा एवं बंधुओं को प्रसन्न करें, बृहस्पति रुष्ट है गुरुजन एवं वृद्धों को प्रसन्न करें, शुक्र रुष्ट है तो पत्नी को प्रसन्न करें. शनि रुष्ट है तो दास-दासी को प्रसन्न करें, राहु है तो दिव्यांग को प्रसन्न करें और यदि केतु अप्रसन्न है तो कोढ़ी को प्रसन्न करें.
यदि हम प्रेम, सत्कार व आदर का भाव रख कर ग्रहों के प्रति व्यवहार करें तो निश्चित ही रुष्ट ग्रह अपने कोप को त्याग कर शांत होंगे. यदि जीवों से संबंध खराब हो तो उपासना, पूजन, जप-तप और दान सब कुछ निष्फल ही रहते हैं.
शरणागत प्रभु काहु न त्यागा।
विश्व द्रोह अधकृत जहि लागा।।
पश्चाताप की अग्नि सब कुछ शुद्ध कर देती है। गौ माता के समक्ष अपने किए अपराधों की क्षमा मिल जाती है. भविष्य में अपराध की पुनरावृत्ति से बचे रहने की भी प्रार्थना एवं कोशिश करें. अपने आस-पास और चारों ओर समाज में मित्र, बंधुओं व वृद्धजनों की सेवा करें और संबंधित ग्रह के जप पूजन, दान यथाशक्ति श्रद्धा पूर्वक करें और चमत्कार देखें। यदि आप ग्रहों को प्रसन्न करना चाहते हैं तो ग्रह दान इस प्रकार करें-
सूर्य ग्रह के लिए गेहूं, लाल वस्त्र, घी, लाल गाय, तांबे की वस्तु और स्वर्ण दान करने का प्रावधान दें. चंद्र के लिए चावल, श्वेत वस्तु, चांदी, कांस्य का पात्र.
मंगल के लिए गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, घी, मसूर दाल, लाल चंदन तांबे की वस्तु स्वर्ण. बुध के लिए मूंग, चीनी, हरा वस्त्र, हरी सब्जी, कांस्य का पात्र दान दें. बृहस्पति के लिए पीले चावल , चना दाल, हल्दी, शहद, पीले वस्त्र, धर्मग्रंथ और स्वर्ण दान दें.
शुक्र के लिए चांदी, चावल, मिश्री, चीनी, श्वेत चंदन, न चमकीला वस्त्र और सुगंधित पदार्थ दान दें. शनि के लिए उड़द, काले तिल, काले चने, चमड़े के जूते और चाकू. राहु ग्रह के लिए सात अनाज उड़द, नारियल, कंबल, बिल्वपत्र, तिल, खिचड़ी, अष्टधातु मुद्रिका और केतु के लिए सात अनाज, तिल , नारियल, ऊनी वस्त्र, कोई हथियार कैंची आदि, खिचड़ी, अष्टधातु और मुद्रिका का दान दें.
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